
कामकाज की अप्राकृतिक दिनचर्या (unnatural routine) का नींद पर नकारात्मक असर पड़ता है। इस स्थिति का शिफ्टों में काम करने वाली महिलाओं को ज्यादा सामना करना पड़ता है।
अब एक नए अध्ययन में बताया गया है कि इस स्थिति के कारण शरीर का जैविक तालमेल (सर्कैडियन रिद्म (circadian rhythm) या जैविक घड़ी) बिगड़ता है, जो मीनोपॉज (रजोनिवृत्ति) में देरी की वजह बन सकता है। यह अध्ययन ‘मीनोपॉज ’ जर्नल (Menopause Journal) में छपा है।
आर्थिक जरूरतों को देखते हुए दुनिया भर में शिफ्टों में काम करने का चलन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन इसकी कीमत स्वास्थ्य के लिए जोखिम बढ़ने के रूप में चुकानी पड़ती है। पहले के अध्ययनों में शिफ्ट में काम करने का हृदय-धमनी (cardiac artery) के लिए होने वाले जोखिम से संबंधित रहे हैं। इसमें खासतौर पर रात की शिफ्ट में काम करने के दुष्प्रभाव पर फोकस रहा है। इसके अलावा इससे जुड़े पेप्टिक अल्सर, टाइप 2 डायबिटीज और प्रोस्टेट, कोलोरेक्टल और ब्रेस्ट कैंसर जैसे रोगों पर भी अध्ययन हुए हैं।
इन सब अध्ययनों के बावजूद रात की शिफ्ट में काम करने वाली अधेड़ और बुजुर्ग महिलाओं के स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभाव (Side effects) को लेकर कोई फोकस नहीं रहा। अधेड़ उम्र की महिलाओं में समय पर मीनोपॉज होने को लेकर चिंता बनी रहती है। क्योंकि समय से पहले या देरी से मीनोपॉज कई तरह की बीमारियों का मार्कर होता है और उससे मौत का खतरा भी जुड़ा होता है।
पहले के अध्ययनों में मीनोपॉज के संबंध में धूम्रपान (smoking) और सामाजिक-आर्थिक स्थिति से जुड़े फ़ैक्टर्स के बारे में बताया गया है, जिससे नेचुरल मीनोपॉज होने की उम्र में अंतर आता है।
लेकिन इस ताजा अध्ययन में शोधकर्ताओं की ऐसी संकल्पना रही कि शिफ्ट वर्क भी मीनोपॉज की उम्र को प्रभावित कर सकता है। क्योंकि पहले के अध्ययनों में यह बताया जा चुका था कि सर्कैडियन रिद्म बिगड़ने का असर ओव्यूलेशन और प्रजनन क्षमता (fertility) पर पड़ता है।
यह भी पाया गया है कि रात के वक्त काम करने से आर्टिफ़िशियल लाइट में ज्यादा देर रहना होता है, जिससे मेलाटोनिन (melatonin) का कामकाज दब जाता है यह गर्भाशय (Uterus) के फंक्शन को बाधित (interrupted) करता है। इसके बावजूद शिफ्ट वर्क और नेचुरल मीनोपॉज के उम्र को लेकर अभी तक बहुत कम अध्ययन हुए हैं।
इस नए अध्ययन में प्री-मीनोपॉज की उम्र वाली करीब 3,700 महिलाओं के सेकेंडरी डाटा को एनलाइज किया गया है। इसका मकसद शिफ्ट वर्क और मीनोपॉज की विभिन्न उम्र के बीच संबंध तलाशना था।
शोधकर्ता स्टेफनी फौबिओन के मुताबिक, अध्ययन में पाया गया कि नेचुरल मीनोपॉज की उम्र पर सर्कैडियन रेगुलेशन का अहम प्रभाव पड़ता है।
बदलती शिफ्ट में काम करने से मीनोपाज में देरी होती है, जबकि नाइट शिफ्ट में काम करने का संबंध जल्दी या सामान्य उम्र से पहले मीनोपॉज होने से है। हालांकि मीनोपॉज की उम्र में अंतर को समझने के लिए अभी और अध्ययन की जरूरत है। इसकी जांच करनी होगी कि मीनोपॉज की उम्र सर्कैडियन रिद्म में बदलाव के कारण हैपोथैलेमिक (एक ग्रंथि) नियमन से निर्देशित होता है या फिर क्रानिक स्ट्रेस जैसे फ़ैक्टर्स पर निर्भर करता है।