
प्रसिद्ध इतिहासकर और सेपियंस किताब के लेखक प्रो. युवाल नोआ हरारी टीईडी टॉक में दिए अपने एक भाषण में कहते हैं कि सत्तर हजार साल पहले हमारे पूर्वज मामूली जानवर थे। प्रागैतिहासिक इंसानों (prehistoric humans) के बारे में जानने के लिए जो सबसे जरूरी बात है वह यह है कि वे बिलकुल भी जरूरी नहीं थे। धरती पर उनका प्रभाव जुगनू या जेलीफिश या कठफोड़वे से ज्यादा नहीं था। इसके ठीक उलट, आज हम इंसान इस ग्रह पर राज करते हैं। तो सवाल उठता है – वहां से यहां तक हम कैसे पहुंच गए? हमने खुद को अफ्रीका के एक कोने में अपनी ही दुनिया में सिमटे रहने वाले मामूली चिंपैंजी से पृथ्वी के शासक में कैसे तब्दील कर डाला?
आखिर हम क्यों हैं सबसे अलग?
हमारा डीएनए चिंपैंजी से काफी मिलता-जुलता है, जो जैविक विकास क्रम की दृष्टि से हमारा सबसे नजदीकी रिश्तेदार भी है। फिर भी हम अलग क्यों हैं? ऐसी कौन-सी खास चीज है जो हम इंसानों को एक चिंपैंजी से अलग बनाती है? हाल ही में स्वीडन के वैज्ञानिकों ने इस सवाल का जवाब ढूंढने की कशिश की। गौरतलब है कि चिंपैंजी; बोनोबो, गोरिल्ला, इंसान और ओरंगउटान के साथ होमिनिड परिवार के सदस्य हैं। चिंपैंजी तकरीबन साठ लाख साल पहले मानव विकास की प्रक्रिया से अलग हो गए थे। इनमें से एक आज का चिंपैंजी बना और दूसरा होमो सेपियंस (homo sapiens) या आधुनिक मानव। स्वीडिश शोधकर्ताओं ने यह पता लगाने का प्रयास किया कि हमारे डीएनए में ऐसी कौन-सी चीज है, जो इंसान और चिंपैंजी के दिमाग को अलग करती है।
“हमने इंसानों और चिंपैंजियों का अध्ययन करने के बजाय प्रयोगशाला में विकसित की गई स्टेम कोशिकाओं (stem cells) का इस्तेमाल किया। हमने इंसानों और चिंपैंजियों की स्टेम कोशिकाओं को मस्तिष्क कोशिकाओं के रूप में विकसित किया। फिर दोनों की तुलना की। हमने पाया कि इंसान और चिंपैंजी अपने डीएनए के एक हिस्से को अलग ढंग से इस्तेमाल करते हैं। यही हिस्सा हमारे दिमाग के विकास में अहम भूमिका निभाता है। डीएनए के जिस हिस्से की पहचान की गई वह हमारे लिए थोड़ा अजीब था। हमने पहले यह कल्पना भी नहीं की थी कि इसकी कोई अलग भूमिका हो सकती है। इससे पहले इस हिस्से को बेकार डीएनए माना जाता था। यह समझा जाता था कि इसकी कोई भूमिका नहीं है।”
– पी.ए. जोहानसन (P.A. Johansson), शोध दल के नेतृत्वकर्ता
मानव मस्तिष्क के विकास से जुड़ी 98 प्रतिशत बातें डीएनए में छिपी हुई हैं
पिछले अध्ययनों में वैज्ञानिकों ने इंसान और चिंपैंजी में अंतर खोजने के लिए डीएनए के उस हिस्से की खोजबीन की जहां जीन प्रोटीन बनाते हैं। उन्होंने इसके लिए सिर्फ प्रोटीनों की खोजबीन की। डीएनए का यह हिस्सा हमारे संपूर्ण डीएनए या जीनोम का महज दो प्रतिशत है। अब हालिया अध्ययन से पता चलता है कि यह अंतर डीएनए के उस हिस्से में मौजूद है जिसे बेकार समझा जाता है और जो हमारे डीएनए का सबसे बड़ा हिस्सा है। परिणामों से जाहिर होता है कि मानव मस्तिष्क के विकास से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें 98 प्रतिशत डीएनए में छिपी हुई हैं, जिसकी अभी तक अवहेलना की जा रही थी। यह वास्तव में एक विस्मयकारी खोज है।
इस हालिया अध्ययन का लब्बोलुआब यह है कि हमारा दिमाग ही हमें खास बनाती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक इस अध्ययन से भविष्य में विभिन्न तरह के मनोविकारों के आनुवंशिकी आधारित इलाज खोजने में मदद मिल सकती है। इस अध्ययन के नतीजे ‘सेल स्टेम सेल’ (Cell Stem Cell) जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं।