
अंतरिक्ष यात्रा यानी हमारी दुनिया से से परे की दुनिया को जानने के लिए पृथ्वी की हद से बाहर जाने का विचार, सदियों से मानव मन को रोमांचित करता रहा है। यह सच है कि खोजबीन की जन्मजात जिज्ञासा हम इंसानों को ज्ञात से अज्ञात की ओर ले गई। इसलिए यह स्वाभाविक ही है कि अज्ञात की खोज में इंसान ने अंतरिक्ष में कदम बढ़ाने का साहस किया। अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यात्रियों (astronauts) को बेहद विषम परिस्थितियों (unforeseen circumstances) का सामना करना पड़ता है और ऐसे में दुर्घटना होना भी लाज़िमी है। अंतरिक्ष यात्रियों को वहाँ प्रत्येक स्थिति को अपने नियंत्रण में करने का भरसक प्रयत्न करना पड़ता है। अंतरिक्ष युग को शुरू हुए 50 साल से ज्यादा हो चुके हैं। इस लंबी कालावधि में हमने कम से कम 18 लोगों को अंतरिक्ष जाने संबंधी प्रयोगों, प्रयासों के चलते खो दिया है, जिसमें तीन रूसी (तत्कालीन सोवियत संघ) अंतरिक्ष यात्री बाह्य अंतरिक्ष (outer space) में किसी दुर्घटना की वजह से मारे गए हैं।
दिन-ब-दिन अंतरिक्ष यात्रा के द्वार पेशेवर अंतरिक्ष यात्रियों (professional astronauts) के साथ-साथ आम लोगों के सैर-सपाटे के लिए खुल रहे हैं। ऐसे में यह पूरी तरह से मुमकिन है कि भविष्य में अंतरिक्ष में होने वाले मौतों में भी इजाफा होगा। सवाल यह उठता है कि अगर अंतरिक्ष में किसी व्यक्ति की मौत हो जाए तो उसके शव (dead body) के साथ क्या होता है?

पहली बात तो यह है कि अगर किसी वजह से किसी अंतरिक्ष यात्री की मौत बाह्य अंतरिक्ष में हो जाती है, तो उसके शव को वापस धरती पर लाने की फिलहाल कोई भी व्यवस्था नहीं है। अन्तरिक्ष कार्यक्रम से जुड़े ज़्यादातर नीति निर्माताओं के मुताबिक अंतरिक्ष से मृत शरीर को वापिस लाना अव्यवहारिक (impractical) है, लेकिन मरने वाले व्यक्ति के परिजनों के लिए अंतरिक्ष यात्री का शव अंतिम संस्कार या कर्मकांडों के लिहाजा से बेहद जरूरी हो सकता है। अंतरिक्ष यान में मृत शरीर को स्टोर करने की कोई भी सुविधा नहीं होती है। दरअसल एक मृत शरीर एक बायोहाजार्ड होता है यानी वह जल्द ही सड़ने लगता है। इसलिए मृतक के शव को धरती पर लाने के लिए मिशन खत्म होने का इंतजार करना भी संभव नहीं होता क्योंकि तब तक शव सड़ने लगता है। अपने आप में अंतरिक्ष में मरना एक दुर्भाग्य के जैसा ही है लेकिन अंतरिक्ष अन्वेषण (space exploration) और मानवता के दायरे को बढ़ाने के लिए अंतरिक्ष में जाना जरूरी होता है।
स्पेस वॉक के दौरान अंतरिक्ष यात्री एक छोटे से एस्टरोइड से भी मारा जा सकता है अगर वह उसके स्पेस शूट में छेद कर दे। इस स्थिति में सांस के रुकने या डीकंप्रेसन से अंतरिक्ष यात्री की मृत्यु कुछ ही सेकेंडों में हो जाएगी। अंतरिक्ष से मृत शरीर को धरती पर वापस लाना मुश्किल काम है इसलिए शव को एयरलॉक में पैक करके अंतरिक्ष में ही छोड़ दिया जाता है। अंतरिक्ष की ठंड के कारण वो आइस ममी में तब्दील हो जाती है। इस बात का पता तब चला जब नासा के अपोलो मिशन के दौरान बने स्पेस शूट का परीक्षण किया गया। अंतरिक्ष में भारी दबाव की वजह से शव में विस्फोट भी हो जाता है। चूंकि स्पेस में गुरुत्वाकर्षण नहीं होता इसलिए जब किसी डेड बॉडी को छोड़ा जाता है तो वो अनंत काल तक अंतरिक्ष के निर्वात (vacuum) में ही तैरता रहता है।
फिलहाल दुनिया की किसी भी स्पेस एजेंसी के पास ऐसी कोई भी योजना नहीं है कि अंतरिक्ष यात्री की मौत के बाद उसके शव के साथ क्या किया जाए। हालांकि 2005 में एक स्वीडिश कंपनी प्रोमेसा ने ‘द बॉडी बैंक’ नाम से एक प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया था जिसका मकसद शव को अंतरिक्ष में बेहद कम तापमान में सुरक्षित रखने का था।
एक आइडिया मंगल पर शव को दफनाये जाने का भी है। यह विचार तब आया जब एलन मस्क ने कहा था कि अगर आप मंगल पर जाना चाहते हैं तो मरने के लिए तैयार रहें। उस समय यह सवाल उठा कि अगर कोई मंगल ग्रह पर मर जाता है तो उसके शव के साथ क्या किया जाएगा? उस समय कई वैज्ञानिकों ने कहा था कि अगर मंगल ग्रह पर चालक दल के एक सदस्य (crew member) की मौत हो जाती है, तो हम शरीर को घर ले जाने के बजाय उन्हें वहीं दफना सकते हैं। लंबी यात्रा के कारण यह समझ में आता है, लेकिन यह कुछ संदूषकों (contaminants) से संबंधित समस्याओं की वजह भी बनता है। यहां तक कि मंगल ग्रह की खोज करने वाले रोवर्स को भी इस कानून को मानना पड़ता है कि वे पृथ्वी के रोगाणुओं (microbes/ germs) को नए ग्रह पर न ले जाएँ। भविष्य में संभावित रहने लायक जगहों को धरती के रोगाणुओं से बचाने में मदद करने के लिए लॉन्च से पहले स्पेस क्राफ्ट को बार-बार साफ किया जाता है। लेकिन एक रोवर पर उतने बैक्टीरिया नहीं होते हैं जितने कि एक डेड बॉडी पर होते हैं। इसलिए रोगाणुओं को मारने के लिए अंतिम संस्कार या दाह संस्कार जरूरी होगा। मतलब यह कि मंगल की सतह को प्रदूषित होने से बचाने के लिए मृत शरीर को जलाना होगा। यह भी अपने आप में बेहद चुनौतीपूर्ण बात है। इस पर भी गहन अनुसंधान (intensive research) की जरूरत है।