
भारत में विज्ञान लेखन बहुत कम होता है, और भारतीय भाषाओं विशेषतः: हिन्दी मे अत्यधिक कम। वर्तमान में भारतीय मीडिया फिर चाहे वह डिजिटल हो या प्रिंट, उनसे गुणवत्ता पूर्ण वैज्ञानिक लेखों की अपेक्षा करना ही मुश्किल होता है। ऐसे मे प्रदीप अपने विज्ञान लेखों के संग्रह “विज्ञान : अतीत से आज तक” लेकर आते हैं, पुस्तक खोलते ही लेख सूची देखकर ही एक सुखद आश्चर्य होता है। इस पुस्तक में प्रदीप ने लोकप्रिय विज्ञान के लगभग हर पहलू को छुआ है, हर विषय पर आपको एक लेख मिल जाएगा।
इस पुस्तक के बारे मे विस्तृत चर्चा से पहले स्पष्ट कर देना आवश्यक होगा कि यह पुस्तक किसी एक विशिष्ट वैज्ञानिक विषय या थीम पर नहीं है। यह पुस्तक विभिन्न विषयों पर लिखे गए वैज्ञानिक निबंधों का एक कोलाज है। यही बात इस पुस्तक को विशेष बनाती है। आपको पुस्तक पढ़ने के लिए शुरू से लेकर आखिर तक पन्ने पलटने की आवश्यकता नहीं है, इसके लेखों को किसी भी क्रम में पढ़ा जा सकता है।
लेखक ने अपने लेखों को मोटे तौर पर सात खंडों मे बांटा है, लेखों की यह समय यात्रा ब्रह्मांड के आदि से अंत की चर्चा से आरंभ होती है, मिथकों का खंडन करते हुए नई खोजों और उससे संभावित खतरों से चेताती है। इस यात्रा मे वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर भी चिंतन है, विज्ञान में हो रही नई खोजों की जानकारी के साथ मस्तिष्क विज्ञान, चेतना, भावनाओ की चर्चा से आगे बढ़ते हुए कुछ प्रमुख वैज्ञानिकों के जीवन चरित को समावेश करते हुए समाप्त होती है।
पहले खंड के सारे लेख एक तरह से विज्ञान का संक्षिप्त इतिहास है जो कि ब्रह्मांड के जन्म, विकास और अंत की अवधारणाओ के विकास पर केंद्रित है। ब्रह्मांड का जन्म कैसे हुआ, इसका विकास कैसे हुआ, इन प्रश्नों के उत्तर की खोज में लेखक हमें भारतीय मनीषीयों की परिकल्पनाओ से आरंभ करते हुए यूनानी दार्शनिकों प्लेटों, अरस्तू और टोलेमी से मिलाता है। विज्ञान के उन्नयन की इस गाथा में अगला पड़ाव कॉपरनिकस, गैलेलियों, न्यूटन युग का आता है, उसके बाद यह विकसित होते हुए ऑलबर्स, फ्रीडमान की अवधारणाओ का समावेश करते हुए आइंस्टाइन के आधुनिक युग मे प्रवेश कर जाता है। ऋग्वेद के नासदीय सूक्त को बेबीलोन के एनूमा एलिस से जोड़कर देखना एक अलग ही अनुभव है। पृथ्वी केंद्रित ब्रह्मांड से शुरू हुई यह यात्रा सूर्य केंद्रित ब्रह्मांड से गुजरते हुए करोड़ों आकाशगंगाओ में से एक औसत आकाशगंगा के एक कोने में पड़े एक औसत तारे के नन्हे ग्रह पर सिमटी मानवता तक पहुँचती है। लेखों की शैली रोचक है, आप लेखों को किसी भी क्रम मे पढ़ सकते है लेकिन शुरू से अंत तक पढ़ेंगे तो ऐसा लगेगा कि आप इस विकास को स्वयं महसूस कर रहे हैं। लेखक ने इस यात्रा मे ब्लैक होल, ब्रह्मांड के अंत के संभावित परिदृश्य, मानव की अंतरिक्ष यात्रा, चंद्र यात्रा पर भी लिखा है जो बोनस है।
अगला खंड संक्षिप्त है लेकिन रोचक है। इस खंड मे लेखक ने प्राचीन विज्ञान मे “वास्तविक” भारतीय उपलब्धियों की चर्चा की है, जिसमे चरक, आर्यभट, भास्कराचार्य पर लिखा है, दशमलव प्रणाली, गणित और आयुर्वेद की उपलब्धियों की जानकारी दी है। लेकिन पुस्तक में इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण मिथकों के खंडन वाला लेख है जिसमें लेखक तथाकथित-अतिरंजित वैज्ञानिक उपलब्धियों की तर्कसंगत ढंग से चुटकी लेता है जैसे वैमानिक शास्त्र, वेदों में तथाकथित विज्ञान, वैदिक गणित आदि। प्राचीन ग्रंथों में विज्ञान का भंडाफोड़ करता हुआ यह भाग छोटा है, इसे और अधिक विस्तार दिया जा सकता था।
तीसरा भाग विज्ञान और तकनीक के विकास के साथ अंधाधुंध औद्योगीकरण से उत्पन्न खतरों से हमें सचेत करता है, लेखक ने इस विकास से उत्पन्न अनेक खतरों को छुआ है, जैसे- प्रजातियों का विलोपन। हमारे पर्यावरण चक्र, खाद्य शृंखला में एक प्रजाति के विलोपन से अपूर्णीय क्षति हो सकती है, बहुत सी फसले, फलों और खाद्यान्नों की किस्में भी लुप्त हो सकती हैं। वर्तमान में अंतरिक्ष दौड़, व्यवसायीकरण से अंतरिक्ष मे कचरा बढ़ रहा है, इस अंतरिक्ष कचरे से बहुत-सी समस्या उत्पन्न हो सकती है, वे धरती पर गिरकर जान माल का नुकसान पहुचा सकते है। ओज़ोन परत की क्षति से उत्पन्न खतरों से तो हम सभी वाकिफ है ही। लेखक आगे के अध्यायों में इंटरनेट पर निर्भरता, कम्प्यूटिंग, मशीन लर्निंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संभावित खतरों से भी सचेत करता है।
इस पुस्तक का सबसे महत्वपूर्ण भाग है “विज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण”, यह एक ऐसा विषय है जिसपर खुलकर चर्चा होनी चाहिए। लेखक पूछता है कि वर्तमान समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण की कमी क्यों है, क्यों पढ़े-लिखे लोगों मे भी अंधविश्वास है। क्यों डाक्टर, इंजीनियर भी फलित ज्योतिष, जादू-टोने पर विश्वास करते है। ये लेख इतने महत्वपूर्ण है कि इन्हें हर हाईस्कूल के छात्र को पढ़ना चाहिए।
खंड-5 गागर मे सागर समेटने का प्रयास है, इस भाग में लेखक ने आधुनिक विज्ञान के नए पहलुओं को समेटा है, जिसमें जीन क्रांति, चिर यौवन की चाहत, मानवीय अंगों की खेती से लेकर, अमरता का सपना तो है ही, इसमे क्वांटम कम्प्यूटिंग और डिजिटल अमरता पर भी चर्चा की गई है। ऊर्जा संकट को हल करने के लिए नाभिकीय संलयन से प्राप्त ऊर्जा पर एक स्वतंत्र अध्याय है तो दूसरी ओर पेड़-पौधों से ऊर्जा उत्पन्न करने की संभावनाओं पर भी रोशनी डाली गई है।
खंड-6 में मानव मस्तिष्क, उसकी रचना, हार्मोनों के प्रभाव से संबंधित लेख हैं। लेखक ने मानव मस्तिष्क को कंप्यूटर से जोड़ने की संभावना पर भी विचार किया है। अंतिम भाग मे लेखक ने कुछ महत्वपूर्ण वैज्ञानिकों, गणितज्ञों की भी चर्चा की है जिसमे रामानुजन, उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी, आइन्स्टाइन, चार्ल्स डार्विन एम्मी नोएथर, सी वी रामन, होमी भाभा के साथ आर्यभट भी हैं। इस सूची में कुछ नाम आम जनमानस के लिए नए और चौंकाने वाले हैं।
कुल मिलाकर 344 पृष्ठों की यह किताब पठनीय है। लेख सुगम और सरल हैं। गणितीय और वैज्ञानिक शब्दावली की जटिलताओं से बचा गया है। ध्यान रहे कि यह पुस्तक लोकप्रिय विज्ञान की है, पाठ्यपुस्तक या शोधपत्र नहीं है। पुस्तक की छपाई उत्तम है, अच्छी गुणवत्ता के कागज का प्रयोग किया गया है। पुस्तक की कीमत 399 रूपये है जो थोड़ी ज्यादा महसूस होती है। इसे कम किया जा सकता था। इस पुस्तक की प्रस्तावना जाने-माने विज्ञान लेखक देवेन्द्र मेवाड़ी ने लिखी है, जो सोने पर सुहागा है। कुल मिलाकर पुस्तक पठनीय और संग्रहणीय है। इसे हर स्कूल के पुस्तकालय में रखा जाना चाहिए।
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समीक्षक: आशीष श्रीवास्तव, वरिष्ठ विज्ञान लेखक
विज्ञान: अतीत से आज तक
प्रकाशक: श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली
लेखक: प्रदीप