भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के 75 वर्ष

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि भारत की वैज्ञानिक विरासत प्राचीन काल से ही खगोल, चिकित्सा, गणित, रसायन जैसे अनगिनत क्षेत्रों में फलती-फूलती आ रही है। सदियों तक विदेशी हुकूमत के अधीन रहने के बाद हमारा देश 1947 में अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुआ। स्वतंत्रता के साथ ही देश की प्रगति की नींव रखी गई। स्वतंत्रता के तुरंत बाद हमारे देश का नेतृत्व आधुनिक भारत के निर्माता पं. जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया। नेहरू का यह यह मानना था कि भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का एक ही रास्ता है- विज्ञान और प्रौद्योगिकी को विकास से जोड़ा जाए। स्वतंत्रता के बाद देश ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापित किए।

सांकेतिक तस्वीर

भारत में वैज्ञानिक शोध, मानव संसाधन और अनुसंधान विकास क्षमताओं की आधारशिला रखने के लिए मई, 1971 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) स्थापना की गई। स्थापना के बाद डीएसटी ने अनेक स्रोत विकसित किए जो बाद में केंद्रित लक्ष्यों के साथ विभागों और मंत्रालयों में स्थापित हुए। इनमें से कुछ हैं: जैवप्रौद्योगिकी विभाग, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान विभाग, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय।

डीएसटी ने लगातार उपयुक्त प्रतिक्रियाओं और अक्सर बिना किसी भूमिका के रूपांतरित परिवर्तनों को सक्षम बनाया है। फलस्वरूप डीएसटी ने एक एक्स्ट्राम्यूरल अनुसंधान अनुदान एजेंसी की भूमिका निभाई जिसमें अनुसंधान के लिए तकनीकी योग्यता के आधार पर खोजकर्ताओं के लिए प्रतिस्पर्धात्मक वृत्ति प्रदान की। यह तंत्र लगभग तीन दशकों से प्रचलन में है। विज्ञान को समाज तक ले जाने और जनसामान्य को जोड़ने की प्रक्रिया को सुनिश्चित करने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं। डीएसटी के सचिव डॉ. आशुतोष शर्मा, डीएसटी के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अखिलेश गुप्ता और डीएसटी पोस्ट-डाक्टरल पॉलिसी फ़ेलो डॉ. जेनिस जीन गोवियस के मुताबिक विगत सात वर्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा की गई प्रभावी पहलों के साक्षी रहे, जिनसे देश में नवाचारी संस्कृति को मार्गदर्शन मिला।

आज डीएसटी ऐसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों और योजनाओं पर गंभीरतापूर्वक काम कर रहा है जिनकी एसटीआई (विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार) पारितंत्र के विकास में महती भूमिका है। विज्ञान व प्रौद्योगिकी प्रणाली में डीएसटी का निवेश पिछले सात वर्षों में दोगुने से अधिक हुआ है। 2014-15 में तकरीबन 2900 करोड़ रुपये से बढ़कर 2021-22 में यह निवेश 6072 करोड़ रुपये तक पहुंच गया।

विगत सात वर्षों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा शुरू किए गए कुछ महत्वपूर्ण कार्यक्रम और योजनाएं निम्न क्षेत्रों में हैं:-

साइबर-भौतिक प्रणालियों पर केन्द्रित एक राष्ट्रीय मिशन: इस मिशन को पाँच सालों के लिए 3600 करोड़ रुपये की कुल लागत के साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा लागू किया जा रहा है। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य प्रौद्योगिकी विकास, विनियोग विकास, मानव संसाधन विकास, कौशल विकास, उद्यमशीलता और स्टार्ट-अप विकास तथा संबंधित प्रौद्योगिकियों के मुद्दों को हल करना है। इस मिशन के तहत समाज की बढ़ती प्रौद्योगिकी ज़रूरतों को पूरा किया जा रहा है और यह अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों के लिये अग्रणी देशों के अंतर्राष्ट्रीय रूझानों तथा रोडमैप का जायजा भी ले रहा है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता को दर्शाती एक प्रतीकात्मक तस्वीर (क्रिएटिव कॉमन्स)

नवाचार और स्टार्टअप को प्रोत्साहित करना: नवाचार और अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से प्रौद्योगिकी का परिवर्तन उत्पादकता वृद्धि, आर्थिक विकास तथा सामाजिक परिवर्तन का मुख्य कारक है और हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को पुनर्परिभाषित करने हेतु प्रौद्योगिकीय नेतृत्व आर्थिक रूप से वैश्विक नेतृत्व के लक्ष्य को प्राप्त करने के प्रमुख कारकों में से एक है। डीएसटी द्वारा एक फ्लैगशिप कायर्क्रम अभिप्रेरित शोध हेतु विज्ञान के अनुसरण में नवाचार (इंस्पायर) को देश में वैज्ञानिक प्रतिभाओं को आकर्षित व प्रोत्साहित करने के लिए सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया गया है। इसके अलावा निधि (नवाचारों के विकास एवं उपयोग हेतु राष्ट्रीय पहल) नामक एक राष्ट्रीय कार्यक्रम को आरम्भ किया गया है जो नवाचारों की समग्र मूल्य श्रृंखला से संबंधित है।

राष्ट्रीय कार्यक्रमों से सम्मिलन: भारत के ज्ञानक्षेत्र-विशिष्ट नेतृत्व का विकास करने के लिए स्मार्ट ग्रिड एवं आफ ग्रिड के साथ एक मिशन नवाचार को भी डीएसटी ने आरम्भ किया। स्वच्छ ऊर्जा और जल, नैनो साइंस व प्रौद्योगिकी, जलवायु परिवतर्न संबंधी शोध और आउटरीच पर केंद्रित विषय-क्षेत्रा संबंधी कार्यक्रमों के द्वारा डीएसटी की सहायता ने इन विषय क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रगति का नेतृत्व किया है। एसटीआई के द्वारा राष्ट्र के सामर्थ्य को बढ़ावा देने के लिए डीएसटी ने नई पहल जैसेकि सुपर कंप्यूटिंग मिशन अत्याधुनिक विनिर्माण अपशिष्ट प्रबंधन और योग एवं ध्यान की विज्ञान व प्रौद्योगिकी (सत्यम) का शुरुआत किया है।

महिला वैज्ञानिकों को प्रोत्साहन: डीएसटी ने अपनी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से, विशेष रूप से महिलाओं को लक्षित करते हुए, लिंग अनुपात में सुधार करने में योगदान दिया है और आज विशेष रूप से सुधार वैज्ञानिक प्रतिष्ठानों में निचले स्तर पर है। एनएएसआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, स्कूल स्तर पर विज्ञान शिक्षा में योगदान देने वाली महिलाओं का प्रतिशत काफी बढ़ गया है और सरकारी प्रयोगशालाओं में भी महिलाओं का प्रतिशत बढ़ गया है। हालांकि, उच्च प्रोफ़ाइल संस्थानों में प्रतिशत अभी भी कम है। इस स्थिति को सुधारने के लिए, डीएसटी अपनी नई योजनाओं के माध्यम से एसएंडटी में कई स्तरों पर महिलाओं की भागीदारी के लिए अपने हस्तक्षेप को बढ़ा रहा है।

सोफिस्टिकेटेड एनालिटिकल एंड टेक्निकल हेल्प इंस्टिट्यूट (साथी):

इस योजना का उद्देश्य शोध कार्यों को बढ़ावा देने के लिये एक ही छत के नीचे उच्च दक्षता से युक्त तकनीकी सुविधाएँ मुहैया कराना है। जिससे शिक्षा, स्टार्ट-अप, विनिर्माण, उद्योग और आरएंडडी लैब आदि की ज़रूरतें आसानी से पूरी हो सकें। इसके तहत डीएसटी ने आईआईटी दिल्ली, बीएचयू और खड़गपुर में तीन केन्द्रों की स्थापना की है।

विज्ञान संचार: विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग और दूरदर्शन ने मिलकर विज्ञान संचार से जुड़ी दो परियोजनाओं डीडी साइंस और इंडिया साइंस की शुरुआत की है। इसके अलावा विज्ञान को लोकप्रिय बनाने और शोधार्थियों को विज्ञान लेखन के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से ‘अवसर’ जैसी योजनाएँ भी शुरू की गई हैं।

प्रतिभा पलायन को रोकने की कवायद: डीएसटी ने देश के विकास में युवाओं की सहभागिता बढ़ाने के उद्देश्य से कई ऐसी योजनाएं घोषित की है और उन पर अमल भी कर रही है। प्रतिभा पलायन को प्रतिभा प्राप्ति में बदलने के मकसद से अनेक ओवरसीज डाक्टोरल और पोस्ट-डाक्टोरल फेलोशिप को शुरू किया गया है। इसके अलावा वज्र (विजटिंग एडवांस ज्वाइंट रिसर्च) योजना भी है, जो अप्रवासी भारतीय वैज्ञानिक समुदाय को भारत में अनुसंधान व विकास कार्यक्रम में योगदान देने का अवसर प्रदान करता है।

स्वच्छ ऊर्जा और जल के क्षेत्रों में अनुसंधान: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री. डॉ जितेंद्र सिंह के मुताबिक डीएसटी की प्रौद्योगिकी मिशन योजनाएं स्वच्छ ऊर्जा और जल के क्षेत्रों में अनुसंधान, विकास और नवाचार पर केंद्रित हैं। स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान और जल प्रौद्योगिकी अनुसंधान पहलों के तहत क्रमशः स्मार्ट ग्रिड, ऑफ ग्रिड, ऊर्जा दक्षता निर्माण, वैकल्पिक ईंधन, स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों, स्वच्छ ऊर्जा सामग्री, नवीकरणीय और स्वच्छ हाइड्रोजन, उत्सर्जन में कमी लाने वाली टेक्नोलॉजी कार्बन कैप्चर उपयोग और भंडारण तथा जल प्रौद्योगिकियों को शामिल करने के लिए वर्तमान योजनाओं का दायरा बढ़ाया गया है।

अंतर-मंत्रालयी परियोजनाएं: भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालय और डीएसटी विश्व को एक बेहतर और अधिक वैज्ञानिक स्थान बनाने में भारत के प्रयासों में योगदान दे रहे हैं। इम्पैक्टिंग रिसर्च इन्नोवेशन एंड टेक्नोलाजी कार्यक्रम को क्रियान्वित करने के लिए 50:50 की साझेदारी के अंतर्गत शिक्षा मंत्रालय के साथ भागीदारी की गई है। इस कार्यक्रम में राष्ट्र द्वारा सामना की जा रही सबसे ज्यादा प्रासंगिक इंजीनियरिंग से जुड़ी चुनौतियों के समाधान ढूंढने का प्रयास है।

कोविड-19 के खिलाफ जंग में भी डीएसटी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। स्वच्छ ऊर्जा के लिए सुपरक्रिटिकल कार्बन डाइआक्साइड पावर प्लांट एंड मैटेरियल एक्सेलरेशन प्लेटफार्म। क्वांटम कंप्यूटिंग और सुपर कंप्यूटिंग के क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास में डीएसटी निरंतर कार्यरत है।

ऊपर हमने डीएसटी की कुछ ही महत्वपूर्ण कार्यक्रमों और योजनाओं की चर्चा की है, वास्तव में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने इतने कीर्तिमान स्थापित किए हैं कि उनको एक ही लेख में समाहित करना असंभव है। बहरहाल, विज्ञान को समाज के अंतिम व्यक्ति तक ले जाने और जनसामान्य को उससे जोड़ने में डीएसटी निरंतर प्रयासरत है।

Editor, the Credible Science Pradeep's name is definitely included in the science communicators who have made their mark rapidly in the last 8-9 years. Pradeep is writing regularly in the country's leading newspapers and magazines on various subjects of science.

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