धरती ग्रह पर जीवन का उद्भव महासागरों में ही हुआ। महासागर पृथ्वी के लगभग तीन-चौथाई क्षेत्रफल में विस्तृत हैं और ये अथाह जल का विशालकाय भंडार है। धरती पर उपलब्ध कुल जल-राशि का 97% हिस्सा इसके 71% भाग पर फैले इन्हीं महासागरों में समाहित है और इन महासागरों में समाया सम्पूर्ण जल सोडियम क्लोराइड, मैग्नीशियम क्लोराइड जैसे लवणों की मौजूदगी के कारण खारा है। महासागर पानी के वो अथाह समूह हैं जो धरती के सातों महाद्वीपों को अलग-अलग करतें हैं। अंतरिक्ष से पृथ्वी नीले रंग की दिखाई देती है जिसका कारण ये महासागर ही हैं। सूर्य के प्रकाश के प्रकीर्णन जैसी अद्भुत प्राकृतिक घटना के कारण नीले रंग के प्रतीत होते समुद्री जल पृथ्वी को ‘नीले ग्रह’ की संज्ञा दिलाते हैं।  पृथ्वी के विशाल क्षेत्र में विस्तृत महासागर अथाह जल का भण्डार होने के साथ ही असीम जैवविविधता का भंडार हैं। वनस्पतियों एवं जीव-जंतुओं की असंख्य जीव प्रजातियाँ महासागरों के विशाल जलीय परितंत्र में विकसित हुईं हैं। महासागरों में निर्मित छोटे-छोटे परिस्थितिकी तंत्र अनेकों जीवों को आश्रय एवं पोषण प्रदान करते हैं। समुद्र में सर्वाधिक जैवविविधता इसके सूर्य के प्रकाश वाली ऊपरी सतह में पायी जाती है। लगभग 90% पादप एवं प्राणी महासागरों की ऊपरी परत में ही मौजूद हैं। महासागरों में व्हेल जैसे बेहद विशालकाय जीव से लेकर प्लैंकटन जैसे अत्यन्त छोटे जीवों का वास है।

 

विश्व के कुल महासागरों में क्षेत्रफल एवं गहराई की दृष्टि से प्रशांत महासागर सबसे बड़ा और सबसे गहरा महासागर है जो एशिया तथा अमेरिका महाद्वीप को एक-दूसरे से पृथक करता है। इस महासागर का क्षेत्रफल 16.57 करोड़ वर्ग किलोमीटर है और यह स्थलमण्डल से 1.59 करोड़ वर्ग किमी. अधिक है अर्थात् प्रशान्त महासागर सातों महाद्वीपों से भी बड़ा है। मेरियाना गर्त जिसकी गहराई 11000 मीटर है प्रशान्त महासागर में स्थित दुनिया का सबसे गहरा गर्त है। प्रशान्त महासागर में ही ताइवान द्वीप, होन्शू द्वीप, फिलीपीन्स द्वीप, फिजी द्वीप, सुमात्रा द्वीप जैसे दुनिया के कई प्रमुख द्वीप अवस्थित हैं। विस्तार की दृष्टि से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा महासागर अटलांटिक महासागर है। भूमध्य सागर जो कि यूरोप तथा अफ्रीका महाद्वीप को एक-दूसरे से विभाजित करता है अटलांटिक महासागर का ही हिस्सा है। इस महासागर में अनेकों खांड़िया तथा असंख्य द्वीप पाये जाते हैं। विश्व प्रसिद्ध मत्स्य क्षेत्र जार्जेज बैंक और डॉगर बैंक इसी महासागर में अवस्थित हैं जो कि मछलियों का वृहद भण्डार है। दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप ग्रीनलैंड द्वीप भी अटलांटिक महासागर में ही अवस्थित है। तीसरा सबसे बड़ा महासागर हिन्द महासागर है जो चारों तरफ से महाद्वीपों से घिरा हुआ है। इसकी औसत गहराई 4000 मीटर है। यह इकलौता महासागर है जिसका नाम किसी देश के नाम पर रखा गया है। मेडागास्कर द्वीप इस महासागर का सबसे बड़ा द्वीप है तथा डायमेंटिना गर्त इसका सबसे गहरा गर्त है। फारस की खाड़ी, बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और श्रीलंका द्वीप हिन्द महासागर के ही मुख्य भाग है। धरती के उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित आर्कटिक महासागर संसार का सबसे छोटा और उथला महासागर है। सर्दियों में यह समुद्री बर्फ से ढका रहता है।

image courtesy: phys.org

महासागर प्राकृतिक रूप से धरती के मौसम-चक्र को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जिस हवा में हम सांस लेते हैं और जिस बारिश से हमारी फसलें विकसित होतीं हैं वो महासागरों पर ही निर्भर करता है। समुद्र, वायुमंडल तथा सूर्य का प्रकाश आपस में अन्तर्क्रिया कर पृथ्वी के मौसम-पैटर्न को संचालित करते हैं। महासागरों का मौसम एवं जलवायु से प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। तूफान और चक्रवात जैसी मौसम सम्बन्धी दशाएँ महासागरों के बदलते तापक्रम से विशेष रूप से प्रभावित होतीं हैं। महासागरों की गर्म तथा ठंडी जलधारायें प्रभावित क्षेत्रों के तापमान को नियंत्रित करती हैं। भारत में मानसून को निर्धारित करने में समुद्री धाराओं की अहम भूमिका है। प्रशान्त महासागर में घटित ‘एल-नीनो’ घटना जलवायु पर महासागरों के प्रभाव का सबसे उम्दा उदाहरण है। ‘एल-निनो’ पेरू तट के पश्चिम में चलने वाली एक गर्म जलधारा है जो प्रशान्त महासागर से होते हुए हिन्द महासागर में प्रवेश कर भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून को कमजोर कर देती है जिसके दुष्परिणामस्वरूप भारत में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसके विपरीत पश्चिमी प्रशान्त महासागर में उत्पन्न ‘ला-निना’ नामक ठंडी महासागरीय जलधारा आर्द्र मौसम को जन्म देती है परिणामस्वरूप भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून अधिक सक्रिय हो जाता है। भारत की 7516.6 किलोमीटर लम्बी तटीय रेखा के सन्दर्भ में भारत में महासागरों का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। भारत तीन तरफ से समुद्र से घिरा है। इसके पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर और दक्षिण में हिन्द महासागर का विस्तार है जो भारत के जलवायु एवं मौसम का प्रमुख नियामक है। भारत में 90% वर्षा बंगाल की खाड़ी से आने वाले दक्षिण-पश्चिमी मानसून से ही होती है। समुद्र की उष्णता एवं शीतलता का प्रभाव उसके आस-पास के तटीय क्षेत्रों में प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। प्रायद्वीपीय भारत के महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात आदि तटीय राज्यों में समुद्र के समकारी प्रभाव के कारण ही ना तो शीत ऋतु में ज्यादा ठंड पड़ती है और ना ही ग्रीष्म ऋतु में ज्यादा गर्मी। महासागर चक्रवात, सुनामी जैसी कई प्राकृतिक आपदाओं को भी जन्म देते हैं। प्रशान्त महासागर में उत्पन्न टाइफून चक्रवात दुनिया का सबसे भयानक चक्रवात है जिसका वेग 800 किमी. प्रति घंटा होता है। बंगाल की खाड़ी में प्रतिवर्ष आने वाले विनाशकारी उष्णकटिबंधीय चक्रवात भारतीय उपमहाद्वीप के तटीय राज्यों में भयंकर तबाही मचाते है। इस प्रकार महासागरीय गतिविधियाँ धरती की जलवायु-प्रणाली पर नैसर्गिक रूप से व्यापक प्रभाव डालती हैं।

 

महासागर हमारे लिए खनिज संसाधन, ऊर्जा संसाधन तथा खाद्य संसाधन के बहुत बड़े स्रोत हैं। मत्स्य उद्योग, पर्यटन, परिवहन एवं जैव-प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में महासागरों का अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान है। ये जैविक एवं अजैविक संसाधनों के अकूत भण्डार हैं। महासागर विश्व की एक बहुत बड़ी आबादी के लिए आजीविका एवं पोषण का प्रमुख आधार है। दुनिया की लगभग 8 अरब आबादी में से 3 अरब से भी ज्यादा लोग अपनी आजीविका हेतु महासागरों पर ही निर्भर है। महासागर विश्व के करीब 3 मिलियन लोगों के लिए प्रोटीन के प्राथमिक स्रोत हैं। महासागर अथाह खनिज सम्पदा को अपने भीतर समेटे हुए हैं। मैग्नीशियम, जस्ता, यूरेनियम, थोरियम, मोनाजाइट, फास्फोराइट आदि प्रमुख खनिज हमें सागरों से ही प्राप्त होते हैं। भारत में केरल तट के समुद्री क्षेत्र में मोनाजाइट का विश्व का वृहत्तम (90%)भण्डार है। प्रशान्त महासागर के गहरे सागरीय निक्षेप में मैंगनीज तथा लोहे का सबसे बड़ा केन्द्र है। नमक जैसा महत्वपूर्ण खाद्य-पदार्थ हमें समुद्रों से ही प्राप्त होता है। भारत के गुजरात, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु के तटीय भागों में नमक का उत्पादन बहुत बड़े पैमाने पर होता है। अकेले गुजरात राज्य हमारे भारत देश के कुल नमक उत्पादन का 50 प्रतिशत उत्पन्न करता है। खनिज तेल तथा प्राकृतिक गैस समुद्र से प्राप्त किये जाने वाले कुल खनिज संसाधनों का 90 प्रतिशत भाग है। मुम्बई हाई क्षेत्र भारत में खनिज तेल का सबसे बड़ा स्रोत है। खनिजों के अतिरिक्त महासागर हमारे लिए बिजली उत्पादन के बहुत बड़े स्रोत हैं। सागरीय लहरों में भारी ऊर्जा निहित है। भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश में जहाँ समुद्री तापमान 25-27 डिग्री सेल्सियस तक रहता है ‘समुद्री तापीय ऊर्जा उत्पादन’ (OTEC) की व्यापक संभावना है। खम्भात की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी, अंडमान निकोबार द्वीप समूह भारत में समुद्र से विद्युत उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त क्षेत्र हैं। मत्स्यन भी समुद्री तटवर्ती प्रदेशों में एक महत्वपूर्ण उद्योग है। विश्व में पकड़ी जाने वाली मछलियों का लगभग 84 प्रतिशत महासागरों के खारे जल से ही प्राप्त होता है। ग्राण्ड बैंक, जार्ज बैंक, डॉगर बैंक दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण समुद्रीय मत्स्यन क्षेत्र हैं। भारत के तीनों ओर फैले समुद्री क्षेत्र मत्स्यन के लिए भारत को अनुकूल क्षेत्र प्रदान करते हैं जिसकी बदौलत आज भारत दुनिया के प्रमुख मछली उत्पादक राष्ट्रों में से एक है। महासागर दुनिया के कई देशों को परिवहन की सुविधा उपलब्ध करवाते हैं। भारत का 95 प्रतिशत व्यापार समुद्री जलमार्गों के माध्यम से ही होता है। समुद्रों में निर्मित बन्दरगाह आयात-निर्यात का सर्वोत्तम माध्यम है। परिवहन के साथ-साथ समुद्री तट पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र भी है जो किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में अहम योगदान देते हैं।

 

महासागर धरती के पर्यावरण एवं परिस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाये रखने में अत्यन्त सहायक हैं।  इसीलिए महासागरों के कुदरती महत्व को जानने एवं समझने तथा समुद्री संसाधनो के प्राकृतिक संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए प्रतिवर्ष 8 जून को ‘विश्व महासागर दिवस’ का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष ‘विश्व महासागर दिवस’ की थीम “द ओशन : लाइफ एण्ड लाइवलिहुड” अर्थात् “महासागर : जीवन और आजीविका” है। महासागरों के पर्यावरणीय महत्व को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र के 72 वें अधिवेशन में आगामी एक दशक अर्थात् वर्ष 2021 से 2030 तक की अवधि को “सतत विकास हेतु महासागर विज्ञान दशक” के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया जिसका उद्देश्य महासागरीय संसाधनों की उचित देख-रेख तथा समुद्र के वैज्ञानिक अनुसंधान एवं अन्वेषण को बढ़ावा देना है।

 

ज्ञातव्य हो कि धरती पर 70 प्रतिशत आक्सीजन हमें महासागरों में पाये जाने वाले समुद्री शैवालों एवं वनस्पतियों से ही प्राप्त होती है। महासागरों में पायी जाने वाली प्रवाल भित्तियाँ (कोरल रीफ) भी सागरीय पारिस्थितिकी तंत्र के प्राकृतिक संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। प्रवाल भित्तियाँ समुद्री अकशेरूकी मूंगा के कंकालों से निर्मित कैल्शियम कार्बोनेटयुक्त कठोर वृहद जलमग्न संरचनाएँ हैं। ये प्रवाल भित्तियाँ कई समुद्री जीवों के लिए पर्यावास एवं आश्रय उपलब्ध कराती हैं इसी कारण इन्हें महासागरों का उष्णकटिबंधीय वर्षावन भी कहा जाता है। एक-चौथाई समुद्री जीव प्रवाल भित्तियों पर निर्भर होते हैं तथा दुनिया भर में पचास करोड़ से अधिक लोग खाद्य सुरक्षा और आर्थिक कल्याण के लिए प्रवाल भित्तियों पर निर्भर हैं। भारत में अधिकांश प्रवाल भित्तियाँ अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी में स्थित हैं। दुनिया की सबसे बड़ी प्रवाल भित्ति आस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ है। हमारे पर्यावरण में समुद्र में पायी जाने वाली मैंग्रोव वनस्पतियों की भी अहम भूमिका है। मैंग्रोव वृक्ष समुद्र तटीय भागों के खारे पानी में पाये जाते हैं। इन्हें सुन्दरी वृक्ष भी कहते हैं। ये मैंग्रोव वन समुद्र तटीय इलाकों की सुनामी, चक्रवात जैसी विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करते हैं। भारत में हिन्द महासागर के सीमान्त भाग में स्थित गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा में दुनिया के सर्वाधिक मैंग्रोव वन पाये जाते हैं और ये पश्चिम बंगाल राज्य के तटीय इलाकों में निवास करने वाली जनसंख्या की प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा करते हैं। महासागर वातावरण की कार्बनडाईआक्साईड गैस को अवशोषित कर ग्लोबल वार्मिंग को कम करके जलवायु परिवर्तन जैसी पर्यावरणीय समस्या से निजात दिलाने में अत्यन्त सहायक हैं।

(Photo by Joe Raedle/Getty Images)

लगातार समुद्रों में जमा हो रहे प्लास्टिक कचरे,  समुद्री जहाजों की आवाजाही से विषैले रसायनों के सागरीय जल में मिलने जैसे कारणों के चलते आज महासागरों का अस्तित्व खतरे में है। प्लास्टिक प्रदूषण महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत बड़ा खतरा है। एक वैज्ञानिक अनुमान के मुताबिक प्रत्येक वर्ष एक करोड़ टन से अधिक प्लास्टिक कचरा महासागरों में प्रवेश करता है जो 80 फीसदी तक समुद्री प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है और इस प्लास्टिक कचरे से लगभग 700 समुद्री प्रजातियों का अस्तित्व संकट में पड़ गया है। प्लास्टिक के ये छोटे-छोटे टुकड़े समुद्री जीवों की खाद्य-श्रृंखला प्रणाली में प्रवेश कर उनकी शारीरिक संरचना एवं स्वास्थ्य को गंभीर क्षति पहुंचाते हैं। समुद्री स्तनधारियों, समुद्री पक्षियों एवं समुद्री कछुओं की करीब 260 प्रजातियाँ प्लास्टिक प्रदूषण का दंश झेल रही हैं। महासागरों पर शोध करने वाली एक अन्तर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक टीम के शोधकर्ताओं ने बताया कि प्लास्टिक प्रदूषण का समुद्री जैव विविधता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ रहा है। जिसमें हर एक जीव द्वारा गलती से प्लास्टिक की थैलियों को निगलने से लेकर माइक्रोप्लास्टिक से प्रदूषित पूरे आवास तक शामिल हैं। प्लास्टिक प्रदूषण का वैश्विक प्रभाव पड़ रहा है। माउंट एवरेस्ट की चोटी से लेकर हमारे महासागर के सबसे गहरे हिस्सों तक प्लास्टिक फैला हुआ है। धरती के तापमान में दशकों से हो रही वृद्धि और जलवायु परिवर्तन से भी महासागरों और बर्फ से जमे क्षेत्रों पर भारी असर पड़ रहा है. जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों ने एक नई रिपोर्ट में चेतावनी जारी की है कि अगर मानवीय गतिविधियों में बड़े बदलाव नहीं आए तो समुद्री जलस्तर के बढ़ने, प्राकृतिक आपदाओं के बार-बार आने और खाने-पीने की किल्लत से करोड़ों लोग प्रभावित होंगे। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार “महासागर गर्म हो रहे हैं, उनका अम्लीकरण बढ़ रहा है और उनकी उत्पादकता घट रही है। ग्लेशियरों (हिमनदों) और बर्फीले क्षेत्रों के पिघलने से समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है और तटीय इलाकों में चरम मौसम की घटनाएँ और ज्यादा गंभीर हो रही हैं। नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2005 से 2019 के दौरान महासागरों के ऊपरी सतह से 2000 मीटर तक गहराई के गर्म होने की मात्रा 11 से 15 गुना होने के आसार हैं। व्हेल, सील आदि कई समुद्री प्रजातियों पर ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन एवं ग्लोबल वार्मिंग का खतरा मंडरा रहा है। महासागरों के तापमान में बढ़ोत्तरी के चलते प्रवाल भित्तियाँ तेजी से विरंजित हो रही हैं दुष्परिणामस्वरूप प्रवाल भित्तियों पर आश्रित सागरीय जैवविविधता संकटग्रस्त है।

 

आज हमें महासागरों के प्रति जागरूक होने तथा उनके संरक्षण एवं संवर्द्धन की जरूरत है। महासागर प्रकृति द्वारा लाखों-करोड़ों सालों में विकसित बेहद महत्वपूर्ण भूवैज्ञानिक संरचनाएँ हैं जो पृथ्वी पर जीवन-प्रणाली का संचालन करती हैं। यदि महासागर संकट में है तो यह पूरे जीव-जगत के लिए खतरे की बात है। हमें जलवायु परिवर्तन तथा प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने, बन्दरगाहों और समुद्री रेत खनन जैसी मानवीय गतिविधियों पर लगाम लगाने की आवश्यकता है ताकि महासागरों का पारिस्थितिकी तंत्र संतुलित बना रहे तथा धरती पर जैवविविधता का भी वजूद बना रहे। हम सब महासागरों से नैसर्गिक रूप से जुड़े हुए हैं अतः महासागरों पर आने वाला हर एक संकट हमारे वजूद पर संकट है।

 

परिचय : —

हरेन्द्र श्रीवास्तव

कार्यक्षेत्र – पर्यावरण शोधकर्ता at विन्ध्य इकोलॉजी एण्ड नेचुरल हिस्ट्री फाउंडेशन, उत्तर प्रदेश।

जन्म — 18 अगस्त 1995

पता – कोरांव, प्रयागराज – उत्तर प्रदेश

मोबाइल नंबर – 8736089561

ईमेल – harendrasrivastava356@gmail.com

 

Editor, the Credible Science Pradeep's name is definitely included in the science communicators who have made their mark rapidly in the last 8-9 years. Pradeep is writing regularly in the country's leading newspapers and magazines on various subjects of science.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *