Father of Fiber Optics narinder singh kapany

नरिंदर सिंह कपानी (Narinder Singh Kapany) भारतीय मूल के अमेरिकी भौतिक विज्ञानी थे जो फाइबर ऑप्टिक्स के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए विश्व विख्यात हैं। कपानी के शोध और आविष्कारों में फाइबर ऑप्टिक्स संचार, लेजर, बायोमेडिकल इंस्ट्रूमेंटेशन, सौर ऊर्जा और प्रदूषण निगरानी शामिल हैं। उनके पास सौ से अधिक पेटेंट हैं और फाइबर-ऑप्टिक्स पर 1955-1966 के दरम्यान 50 से अधिक शोध पत्र लिखे। उनका नाम नोबेल पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया था।

भौतिकी की नई शाखा फाइबर ऑप्टिक्स की नींव रखने वाले, ग्लास-फाइबर की कल्पना करने, सबसे पहले उसे बनाने तथा मुड़े हुए ग्लास-फाइबर में से सबसे पहले प्रकाश को गुजारने वाले महान भौतिक विज्ञानी नरिंदर सिंह कपानी का जन्म 31 अक्टूबर 1926 को पंजाब के मोगा में एक सिख परिवार में हुआ था। इनकी शुरुआती शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई। आगरा यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री लेने के बाद कपानी ने कुछ वक्त तक इंडियन ऑर्डनेन्स फैक्ट्रीज सर्विस, देहरादून में काम किया। बाद में आगे की पढ़ाई के लिए इंपीरियल कालेज लंदन चले गए।

NS Kapany’s autobiography
NS Kapany’s autobiography

1955 में इंपीरियल कालेज लंदन से कपानी ने ऑप्टिक्स के क्षेत्र में पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। इंपीरियल कॉलेज में पढ़ाई के दौरान कपानी ने फाइबर के माध्यम से संचार पर हेरोल्ड हॉपकिन्स के साथ मिलकर काम किया। इसी दौरान 1953 में उन्होंने पहली बार ऑप्टिकल फाइबर के माध्यम से एक फोटो को दूसरी जगह भेजने की उपलब्धि हासिल की, जो 1954 में फाइबर ऑप्टिक्स तकनीक के तौर पर दुनिया के सामने आई।

उन्होंने 1954 में फाइबर ऑप्टिक्स तकनीकी का विकास कर पूरी दुनिया में नया कीर्तिमान स्थापित किया। गौरतलब है कि कपानी ने ही 1960 में साइंटिफिक अमेरिकन के लिए लिखे गए एक लेख में पहली बार ‘फाइबर ऑप्टिक्स’ शब्द गढ़ा था।

दुख की बात है कि भारत में ही बहुत कम लोग इस बात से परिचित है कि भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक प्रोफेसर नरिंदर कापानी को पूरी दुनिया फाइबर ऑप्टिक्स के पितामह (Father of Fiber Optics) के रूप में जानती है। लेकिन साल 2009 में ऑप्टिकल फाइबर की खोज के लिए चार्ल्स काव को नोबेल पुरस्कार दे दिया गया। जिसके बाद कई वैज्ञानिकों ने सवाल खड़े किए, उनका मानना था कि इस पुरस्कार के असली हकदार डॉ. कपानी थे।

कापानी के अनुसंधान के कारण ही गैस्ट्रोस्कोप, एन्डोस्कोप व ब्रोंकोस्कोप जैसे वैज्ञानिक यन्त्रों का निर्माण संभव हुआ। ये सभी कार्य चार्ल्स काव के कार्य के प्रकाश में आने के पहले के हैं। नोबल पुरस्कार पर नजर रखने वाले जानकारों का मानना है कि स्वीडिश अकादमी चार्ल्स काव के कार्य को महत्व देना चाहती थी तो उसे काव व कपानी को संयुक्त रूप से पुरस्कार देना था।

नोबेल प्राइज़ कमेटी द्वारा की गई उपेक्षा पर, जब पत्रकारों ने, नरिंदर सिंह की प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने कहा: 

‘मैंने जो काम किया वह विश्व के सामने है। नोबेल कमेटी के निर्णय पर मैं कुछ नहीं कह सकता हूँ।’

कापानी केवल वैज्ञानिक ही नहीं थे। वे अपनी खोजों का लाभ जन-जन तक पहुँचाने के लिए उनके उत्पादन में पहल करने में भी माहिर थे। आविष्कार करने तथा उसके व्यापारिक उत्पादन हेतु प्रौद्योगिकी विकसित करने के साथ उसको बेचने में भी सरदार नरिंदर सिंह माहिर थे। ऑप्टिक टेक्नोलॉजी इनकारपोरेशन बनाकर फाइबर ऑप्टिक्स पर आधारित वैज्ञानिक उपकरणों अथवा यंत्रों का उत्पादन शुरू करने का श्रेय कपानी को ही जाता है। एक सफल उद्योगपति के रूप में कपानी कई कंपनियों के प्रमुख थे।

कपानी की सक्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने 82 वर्ष की उम्र में सौर उर्जा के क्षेत्र में पेटेंट प्राप्त किया था। 4 दिसंबर 2020 को अमेरिका के कैलिफोर्निया में 94 साल की उम्र में नरिंदर सिंह कपानी का निधन हो गया। कपानी दुनिया के शीर्ष वैज्ञानिकों में शामिल रहे, फाइबर ऑप्टिक्स का आविष्कार करके दुनिया में क्रांति ला दी।

आज कंप्यूटर से लेकर मेल, सेल्यूलर फोन आदि फाइबर के कारण चल रहे हैं। नरिंदर सिंह कपानी के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता।

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