आए दिन जलवायु परिवर्तन को लेकर हो रही तरह-तरह की भविष्यवाणियों के बीच एक और भी कड़ी जुड़ गई है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि अगर आर्कटिक की बर्फ ऐसे ही पिघलती रही, तो उसका एक प्रभाव यह भी होगा कि उससे ब्रिटेन और ग्रीनलैंड के तटवर्ती इलाकों में विनाशकारी सुनामी आने का खतरा है।

अध्ययन में कहा गया है कि आर्कटिक की बर्फ के पिघलने से ब्रिटेन और ग्रीनलैंड के पास के महासागरों की पर्पटी हर साल 2.5 सेंटीमीटर उठ रही है। बेहद तेजी से पिघलते बर्फ के दबाव के कारण इन क्षेत्रों में ऐसे परिवर्तन होंगे जो सुनामी आने का कारण बन सकती हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि पिघलती बर्फ ही समुद्र तल की टेक्टॉनिक प्लेटों पर इतना प्रभाव डालेगी जिससे समुद्र तल पर भूकंप आ जाएगा और उसका परिणाम यह होगा कि एक विनाशकारी सुनामी ग्रीनलैंड और ब्रिटेन पर कयामत जैसी स्थिती पैदा कर देगी।

यह चेतावनी लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज के अर्थ साइंस के प्रोफेसर बिल मैग्वायर ने दी है। द साइंस टाइम की रिपोर्ट में मैग्वायर ने समझाया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण गायब हो रही बर्फ की चादरें महासागरों की टेक्टोनिक प्लेटों में अस्थिरता उत्पन्न कर सकती हैं, जिसकी वजह से ग्रीनलैंड के आसपास बड़े पैमाने पर भूकंप आ सकता है जो यूनाइटेड किंग्डम (ब्रिटेन) का भी सफाया कर सकता है।

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प्रोफेसर मैग्वयार के मुताबिक संभावित विनाशकारी सुनामी की उत्पत्ति भूकंपीय तरंगों से ही होगी। जो टेक्टोनिक प्लेटों की गतिविधियों के कारण विकसित होंगी जो अब तक टनों की मात्रा में बर्फ से ढकी थीं। अत्यधिक मात्रा में यह बर्फ पिघलने से हजारों सालों से दबी टेक्टोनिक प्लेटें पिघले पानी को ऊपर धकेलने का काम करेंगी।

ग्रीनलैंड, जो बर्फ का एक बहुत ही बड़ा भूभाग है, सबसे ज्यादा विनाशकारी सुनामी का अनुभव कर सकता है, क्योंकि उसके नीचे की पृथ्वी की पर्पटी उठ रही है। इस डराने वाले खुलासे में मैग्वायर ने यह भी बताया कि ग्रीनलैंड, आइसलैंड और स्वालबार्ड के बर्फ पिघलने की रफ्तार को संवेदनशील जीपीएस उपकरणों ने पकड़ा है। इससे यहां प्रति वर्ष महासागर की पर्पटी 2.5 सेटीमीटर तक ऊंची उठ रही है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि आर्कटिक की बर्फ पिघलने से उसका असर ध्रुवीय भालुओं के प्रजनन, उनकी गतिविधियों और भोजन के तौर तरीकों पर पड़ा है। इससे वे अपने अस्तित्व के लिए जरूरी गतिविधियां चलाने में असमर्थ होते जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त हिम हानि ने इन भालुओं को अपनी खुराक बदलने पर मजबूर कर दिया है। ध्रुवीय भालू अब सील खाने की जगह पक्षी और उनके अंडों से काम चला रहे हैं क्योंकि बर्फ पिघलने से वे सील का शिकार नहीं कर पा रहे हैं। यह अध्ययन द रॉयल सोसाइटी पब्लिशिंग में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि ध्रुवीय भालू अपनी प्रजाति के अस्तित्व को बचाने के लिए अंतः प्रजनन यानि अनुवांशकीय रूप से नजदीकी साथियों के साथ प्रजजन करने को विवश हो गए हैं। वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि अगर यही दर रही तो ध्रुवीय भालू इस सदी के अंत तक विलुप्त ही हो जाएंगे!

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