
हाल ही में शोधकर्ताओं ने एक भारतीय मूल के विज्ञानी डॉ. मनीष गर्ग के नेतृत्व में जर्मनी के स्टुट्गार्ट स्थित ‘मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर सॉलिड स्टेट रिसर्च’ में लंबे समय से चल रहे प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध कर दिखाया है कि वास्तविक स्थान और समय में इलेक्ट्रॉन कणों को देख पाना अब मुमकिन है। गौरतलब है कि अणुओं में इलेक्ट्रॉन कणों गति को ट्रैक करना रासायनिक परिवर्तनों को समझने और नियंत्रित करने की कुंजी है। हालांकि, मौजूदा तकनीकों के सीमित रिज़ॉल्यूशन के चलते वास्तविक स्थान और समय में इलेक्ट्रॉन कणों की गति को देखने का लक्ष्य अभी तक पूरा नहीं हो सका था।

जहां एक तरफ वैज्ञानिक उपलब्धियों और तकनीकी प्रगति की बदौलत प्रकृति में मौजूद सूक्ष्म घटकों और पृथ्वी के जीव-जंतुओं को प्रभावित करने वाले वायरस और बैक्टीरिया के अध्ययन-अवलोकन के लिए अत्याधुनिक माइक्रोस्कोप विकसित किए गए वहीं इलेक्ट्रॉन जैसे अतिसूक्ष्म कणों को देख पाना विज्ञानियों के लिए एक चुनौती ही बना रहा। एटोसेकंड साइंस के क्षेत्र में लंबी जद्दोजहद के बाद विज्ञानी या तो इलेक्ट्रॉन कणों के घूमने के समय को नाप सके या फिर स्पेस में इसकी उपस्थिति को ही जान पाने में सफल हो सकें। इलेक्ट्रॉन कणों के घूमने का समय जो कि एटोसेकंड (एक सेकंड के एक अरबवें हिस्से का अरबवां हिस्सा) टाइम स्केल में होता है उस टाइम स्केल में जाकर विज्ञानियों ने इलेक्ट्रॉन गतिकी को समझने की कोशिश की लेकिन वे स्पेस में इस तीव्रगामी कण को देख पाने में कामयाब नहीं हो सके।
अब इस हालिया अध्ययन में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर सॉलिड स्टेट रिसर्च के डॉ. मनीष गर्ग और उनके सहयोगियों ने अल्ट्राशॉर्ट लेजर पल्सेज के साथ स्कैनिंग टनलिंग माइक्रोस्कोपी को मिलाने का काम किया है और एक स्पेस-टाइम क्वांटम माइक्रोस्कोप प्रस्तावित किया है। यह स्पेस-टाइम क्वांटम माइक्रोस्कोप सीधे इलेक्ट्रॉन गति के लिए वांछित स्पेस-टाइम रिज़ॉल्यूशन प्रदान करता है। इन दोनों तकनीकों के सम्मिलन से शोधकर्ताओं को पहली बार एटोसेकंड टाइम स्केल पर एटॉमिक स्केल का रिज़ॉल्यूशन मिला और वे अति तीव्रगामी इलेक्ट्रान कणों की इमेज प्राप्त करने में सफल हो सके। इस हालिया कीर्तिमान का विस्तृत विवरण दो प्रसिद्ध पीयर-रिव्यूड जर्नलों ‘साइंस’ और ‘नेचर फोटोनिक्स’ में प्रकाशित हो चुका है।
उल्लेखनीय है कि डॉ. मनीष गर्ग ने अपने पी-एच.डी. शोध के दौरान जर्मनी के म्यूनिख शहर स्थित मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट ऑफ क्वांटम ऑप्टिस से ‘एटो सेकंड मैट्रोलोजी’ में विशेषज्ञता हासिल की और उसके बाद उन्होंने अपने पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च के दौरान जर्मनी के स्टुट्गार्ट स्थित मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर सॉलिड स्टेट रिसर्च से ‘स्कैनिंग टनलिंग माइक्रोस्कोपी’ में विशेषज्ञता प्राप्त की। वे दुनिया के पहले ऐसे विज्ञानी हैं जिन्होंने इन दोनों जटिल तकनीकों को जोड़ने का काम किया है।
डॉ. मनीष गर्ग और उनकी टीम द्वारा किए गए इस महत्वपूर्ण शोध के बाद अब रासायनिक क्रियाओं पर पूर्ण नियंत्रण पाने का वैज्ञानिको का सपना एक बार दोबारा जाग गया है। इन प्रयोगों के बाद अब जैव भौतिकीय प्रतिक्रियाओं को समझने के साथ-साथ आधुनिक सोलरसेल के निर्माण, उर्जा एवं इलेक्ट्रोनिक उपकरणों की गति बढ़ाने की अनूठी संभावनाओं के नए द्वार भी खुले हैं। इस खोज के बाद इस बात की उम्मीदें जगी हैं कि पेड़-पौधों में होने वाली प्रकाश संश्लेषण जैसी मूलभूत रासायनिक प्रक्रियाओं को अब देखा और समझा जा सकेगा। इसके साथ ही नए पदार्थो के निर्माण में आणविक स्तर पर वैलेंस इलेक्ट्रोनों के संयोजन को देखा जा सकेगा, जो क्वांटम भौतिकी की हमारी समझ को नए आयाम प्रदान करेगा।