विदा हो चुका वर्ष 2021 यानी इक्कीसवीं सदी का इक्कीसवाँ साल मानव जाति के लिए पिछले सौ वर्षों का सबसे बेरहम साल साबित हुआ। कोविड-19 महामारी ने जैसा रौद्र रूप 2021 में दिखाया, वैसा 2020 में भी नहीं दिखाया था, जब वह बेहद तेजी से फैला था। महामारी की वजह से ज्यादातर वैज्ञानिक शोधकार्यों में व्यवधान कायम रहा, लेकिन इसके बावजूद वैज्ञानिक उपलब्धियों के मद्देनजर 2021 निराशाजनक नहीं था, बल्कि पृथ्वी, आकाश और मानव विकास से जुड़ीं कई दिलचस्प घटनाओं और उल्लेखनीय उपलब्धियों का साक्षी बना। 2021 में हुए वैज्ञानिक प्रयोगों-शोधों में कोरोना महामारी के रोकथाम के उपायों पर काफी ज्यादा जोर रहा, जिसकी बदौलत शीर्ष दस उपलब्धियों में से दो कोरोना संबंधी अनुसंधान कार्यों पर ही रहीं। इसके अलावा इंसानी करतूतों की वजह से मंडराते खतरों जैसे – जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता के विनाश आदि पर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक चिंतन-मनन हुआ। अंतरिक्ष और ब्रह्मांड के रहस्यों को सुलझाने के लिहाज से भी पिछले साल कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कदम उठाए गए, जिनके नतीजे आने वाले वर्षों में मिलेंगे। आइए, साल 2021 की कुछ महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धियों का जायजा लेते हैं। 

कोविड-19 के खिलाफ वैक्सीन कारगर

कोविड-19 टीकों का विकास वास्तव में 2020 की खबरों का हिस्सा है, लेकिन सफल क्लीनिकल ट्रायल्स के बाद उन्हें औपचारिक रूप से 2021 में ही रोल आउट किया गया, जिसके बाद कोविड-19 के विरुद्ध जंग में वैक्सीन कारगर साबित हुए। नेशनल ऑटोनॉमस यूनिवर्सिटी ऑफ मेक्सिको के बायोमेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट में प्रतिरक्षाविज्ञानी (इम्यूनोलॉजिस्ट) डॉ. एड्डा स्यूटो के मुताबिक, 2021 की सबसे बड़ी और सकारात्मक खबर यह रही कि शोधकर्ताओं को यह पता चला कि कोरोना वायरस प्रतिरक्षा के प्रति अतिसंवेदनशील है और इसको नियंत्रित करने के लिए प्रभावी वैक्सीन निर्मित किया जा सकता है। एड्डा स्यूटो का कहना है कि यह इस वर्ष हुई सबसे जरूरी खोज है क्योंकि ऐसे वायरस भी होते हैं जो वैक्सीन के प्रति अतिसंवेदनशील नहीं होते और अगर ऐसा कोविड-19 के मामले में होता तो स्थिति और भी खतरनाक हो सकती थी। एड्डा स्यूटो का मानना है कि यही कारण रहा कि हमें कोविड-19 के विरुद्ध जंग के लिए रिकॉर्ड समय में वैक्सीन विकसित करने में सफलता मिल सकी।

2021 में फाइजर बायोएनटेक और मॉडर्ना समेत कई वैक्सीने लोगों तक पहुंचीं जिससे साल के मध्य में बड़ी संख्या में लोगों को महामारी से राहत भी देखने को मिलने लग गई। भारत ने भी कोविड-19 टीकाकरण (वैक्सीनेशन) में सौ करोड़ डोज के आंकड़े को पार कर कीर्तिमान स्थापित किया। नवंबर महीने में दक्षिण अफ्रीका में कोरोना का एक नया वेरिएंट ओमिक्रॉन मिला जो वर्तमान में पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। फिलहाल संपूर्ण वैक्सीनेशन पर जो दिया जा रहा है।

जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप का सफल प्रक्षेपण

25 दिसंबर को अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने अब तक के सबसे शक्तिशाली स्पेस ऑब्जर्वेटरी ‘जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप’ को फ़्रेंच गुयाना स्थित यूरोपियन स्पेसपोर्ट से लॉन्च किया। ब्रह्मांड की खोज इंसान की अंतहीन जिज्ञासा की एक रोमांचक उड़ान है। ब्रह्मांड और अंतरिक्ष के बहुत से रहस्य आज भी अनसुलझे हैं, बहुत से सवालों के जवाब अभी खोजे जाने बाकी हैं। ब्रह्मांड, अंतरिक्ष और खगोलीय पिंडों (ग्रहों, तारों, निहारिकाओं, आकाशगंगाओं आदि) के बारे में एक बेहतर समझ अख़्तियार करने के लिए ही जेम्स वेब को अंतरिक्ष में भेजा गया है।

जेम्स वेब टेलीस्कोप मिशन के चार मुख्य उद्देश्य हैं। पहला, बिग बैंग के बाद बनने वाले शुरुआती तारों और आकाशगंगाओं की खोज। दूसरा, तारों के चारों ओर के ग्रहों का अध्ययन। तीसरा, तारों और आकाशगंगाओं की उत्पत्ति को समझते हुए यह मसला सुलझाना कि ब्रह्मांड कैसे बना। इसका चौथा मकसद है, जीवन की उत्पत्ति का रहस्य सुलझाना। आने वाले वर्षों में जेम्स वेब से हमें कई सवालों के जवाब मिल सकते हैं। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि जेम्स वेब की मदद से उन आकाशगंगाओं को भी देखने में मदद मिल सकती है जोकि ब्रह्मांड की उत्पत्ति के साथ ही बनी थीं। यह तकरीबन 9.7 अरब डॉलर की लागत वाला अमेरिकी इतिहास का अब तक सबसे बड़ा स्पेस साइंस प्रोजेक्ट है, जिसमें समय के साथ कई अत्याधुनिक तकनीकों को जोड़ा गया है।

हमारा ब्रह्मांड तेजी से फैल रहा है, वे आकाशगंगाएं भी पृथ्वी से दूर जा रही हैं जो ब्रह्मांड की शुरूआत में बनीं थीं। दूर जाने वाली आकाशगंगाओं के प्रकाश की वेवलेंथ दिखाई देने वाले प्रकाश से इन्फ्रारेड प्रकाश में बदल गईं हैं, ऐसे में जेम्स वेब इन्फ्रारेड की खिड़की का इस्तेमाल करके ब्रह्मांड की उस अनदेखी दुनिया के अध्ययन में सक्षम होगा। फिलहाल जेम्स वेब धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर अपनी मंजिल लैगरेंज पॉइंट की ओर बढ़ रहा है। वहां पहुंचने में इसे एक महीने का वक्त लगेगा। फिर अगले पांच महीनों में यह काम करना शुरू कर देगा।

होमो सेपियंस का क़रीबी रिश्तेदार

विगत वर्ष की सबसे बड़ी खोजों में मानव की नई प्रजाति होमो लोंगी या ड्रैगनमैन की खोज उल्लेखनीय है। वैज्ञानिकों के मुताबिक़ यह खोज मानव विकास क्रम की कहानी में नया मोड़ लाकर इंसानी उत्पत्ति के इतिहास को नए सिरे से लिखने के लिए बाध्य कर सकती है। 25 जून 2021 को ‘द इनोवेशन’ जर्नल में प्रकाशित तीन शोधपत्रों के माध्यम से इस खोज का खुलासा किया गया। शोधकर्ताओं का दावा है कि हमारे नज़दीकी संबंधी निएंडरथल्स नहीं बल्कि ड्रैगन मैन की यह नई प्रजाति थी। ग़ौरतलब है कि अभी निएंडरथल्स और होमो इरेक्टस को मनुष्य का सबसे नज़दीकी रिश्तेदार समझा जाता है। ऐसे में अगर ड्रैगन मैन को एक अलग प्रजाति के रूप में दर्जा मिल गया तो निएंडरथल्स को आधुनिक मानव के क़रीबी संबंधियों के पद से हटाया जा सकता है।

ड्रैगन मैन आज से तकरीबन एक लाख 46 हज़ार साल पहले पूर्वी एशिया में रहते थे। वैज्ञानिकों का मानना है कि ड्रैगन मैन बेहद शक्तिशाली और आक्रामक रहे होंगे। हालाँकि उनके रहन-सहन के तौर-तरीक़ों के बारे में कुछ खास जानकारी नहीं मिल पाई है। फ़िलहाल हमारे पास ड्रैगन मैन के होने का प्रमाण सिर्फ़ एक प्राचीन खोपड़ी है, जिसका जीवाश्म 1933 में उत्तर पूर्वी चीन के हर्बीन में एक मज़दूर को मिला था।

लंदन स्थित नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के रिसर्च लीडर और प्रख्यात एवॉल्यूशनरी बायोलॉजिस्ट प्रोफ़ेसर क्रिस स्ट्रिंगर का कहना है कि यह पिछले 50 साल की सबसे बड़ी खोज है। उनके मुताबिक़ अब तक मिले लाखों सालों के जीवाश्म अवशेषों में यह सबसे महत्वपूर्ण माना जा सकता है। वहीं चाइनीज एकेडमी ऑफ़ साइंस के प्रोफ़ेसर शीजुन नी का मानना है कि यह एक बड़ी कामयाबी है कि हमने अपनी सबसे क़रीबी प्रजाति की पहचान कर ली है।

ग़ौरतलब है कि ड्रैगन मैन या होमो लोंगी एशिया में उस समय रह रहे थे, जब होमो सेपियंस, होमो निएंडरथल्स, डेनिसोवंस और होमो फ्लोरेसीन्सिस मानव प्रजातियाँ भी पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद थीं। वैज्ञानिकों का अभी तक यह मानना था कि मनुष्य जैसी दिखने वाली सबसे पुरानी प्रजाति होमो इरेक्टस अफ़्रीका से बाहर निकलकर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैली और बाक़ी मानव प्रजातियाँ होमो इरेक्टस के क्रमिक विकास की ही देन हैं। इस निष्कर्ष को अब होमो लोंगी की खोज से चुनौती मिलने लगी है, जो होमो इरेक्टस के वंशज नहीं प्रतीत होते। जब होमो सेपियंस पूर्वी एशिया तक पहुँचे थे तब होमो लोंगी उस समय वहाँ मौजूद थे, तो उनमें आपस में जेनेटिक मिक्सिंग हो सकता है। फ़िलहाल यह स्पष्ट नहीं है।

विश्व की पहली मलेरिया वैक्सीन

घाना, केन्या और मलावी में हुए लंबे क्लीनिकल ट्रायल्स के बाद डब्ल्यूएचओ (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन) ने दुनिया की पहली मलेरिया रोधी वैक्सीन ‘आरटीएस, एस/एएस01’ या ‘मॉस्कीरिक्स’ को अक्टूबर 2021 में मंजूरी दे दी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस ने संयुक्त राष्ट्र संघ के दो विशेष सलाहकार समूहों द्वारा समर्थन मिलने के बाद इस वैक्सीन की स्वीकृति का ऐलान करते हुए इसे ऐतिहासिक क्षण बताया था। घेब्रेयसस ने कहा कि इससे मलेरिया को रोकने के लिए मौजूदा उपकरणों के अलावा वैक्सीन का प्रयोग करके प्रति वर्ष दसियों हजार युवाओं की जान बचाई जा सकती है। यह वैक्सीन प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम के खिलाफ काम करता है, जो मलेरिया फैलाने वाले पांच परजीवी प्रजातियों में से एक है और सबसे घातक भी है।

हालांकि ‘आरटीएस, एस/एएस01’ वैक्सीन में गंभीर मलेरिया को रोकने की क्षमता सिर्फ 30 प्रतिशत ही है। इसके लिए वैक्सीन की चार डोज लेनी होंगी और टीकाकरण से मिलने वाली एंटीबॉडी कुछ ही महीनों में खत्म हो जाती है। फिर भी संक्रामक रोग विशेषज्ञों को इस वैक्सीन से काफी उम्मीदें है, उनका कहना है कि 30 प्रतिशत मामले कम होने से भी बहुत सारी जिंदगियाँ बचेंगी और बहुत सारी माताओं को अपने बच्चों को अस्पताल नहीं ले जाना होगा जिससे पब्लिक हेल्थ सिस्टम पर दबाव कम होगा। भले ही यह वैक्सीन बहुत ज्यादा प्रभावशाली नहीं है लेकिन फिलहाल हमारे पास एक ऐसा मलेरिया रोधी वैक्सीन है जो सुरक्षित है और जिसका उपयोग किया जा सकता है। सिर्फ अफ्रीका में प्रतिवर्ष 20 करोड़ लोग मलेरिया से पीड़ित होते हैं, जिनमें से चार लाख से अधिक लोगों की जान चली जाती है। इनमें से ज़्यादातर पांच साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं।

दुनिया का पहला वाणिज्यिक क्वांटम प्रोसेसर

व्यवहारिक रूप से क्वांटम कंप्यूटिंग अभी तक वैज्ञानिकों के लिए भी एक सैद्धांतिक कल्पना जैसी ही थी, लेकिन पिछले दो वर्षों में पूरा परिदृश्य ही बदल गया है। इस दिशा में हो रही प्रगति के रफ्तार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरा क्वांटम कंप्यूटर तो नहीं, पर उसके प्रोसेसर या सीपीयू को मार्किट में लॉंच किया जा चुका है। बीते साल एक डच स्टार्टअप कंपनी क्वांटवेयर ने दुनिया के पहले क्वांटम प्रोसेसिंग यूनिट (क्यूपीयू) या प्रोसेसर को बाजार में लॉंच किया। इस सुपरकंडक्टिंग प्रोसेसर का नाम है: ‘सोप्रानो’। क्वांटम कंप्यूटिंग के 40 वर्षीय इतिहास के मद्देनजर यह अपने आप में किसी चमत्कारिक उपलब्धि से कम नहीं है। आज क्वांटम कंप्यूटर को बनाने के लिए माइक्रोसॉफ़्ट, इंटेल, एल्फाबेट-गूगल, आईबीएम, डी-वेब सहित अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ और विभिन्न देशों की सरकारें (इनमें भारत सरकार भी शामिल है) राष्ट्रीय बजट का बड़ा हिस्सा इसके ऊपर खर्च कर रही हैं।

एक ऐसा ग्रह जिसके हैं ‘तीन सूरज’!

गत वर्ष खगोलविदों को ओरियन तारामंडल में एक ऐसा विचित्र व दुर्लभ ग्रह मिला जो एक साथ तीन सूर्यों की परिक्रमा कर रहा है। इस तारा समूह का नाम खगोलविदों ने ‘जीडब्ल्यू ओरियनिस’ रखा है और यह पृथ्वी से तकरीबन 1300 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है। इस तारा समूह में तीन धूल भरे नारंगी छल्ले हैं जो एक दूसरे के अंदर रहते हैं। वैज्ञानिक इस तारा समूह को आकाश में एक विशाल बैल की आँख के रूप में देखते हैं। केंद्र में तीन तारे हैं, जिनमें से दो के पास एक दूसरे के साथ करीबी जुड़वा कक्षाएं (बाइनरी ओरबिट्स) हैं और तीसरा अन्य दो के आसपास व्यापक रूप से स्थित है। ब्रह्मांड में इस तरह का ट्रिपल स्टार सिस्टम दुर्लभ है।

एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स में प्रकाशित एक शोध पत्र में शोधकर्ताओं ने चिली में एएलएमए (अटाकामा लार्ज मिलिमीटर/ सबमिलिमीटर एरे) टेलीस्कोप की सहायता से इस तारा समूह को बारीकी से देखा था। उन्होंने एक असामान्य घटना देखी- तीन धूल के छल्ले एक दूसरे के साथ बिना क्रम के पाए गए और सबसे भीतर का रिंग इस कक्षा में बेतहाशा लहरा रहा था।

तब खगोलविद यह प्रस्ताव लेकर आए कि एक युवा ग्रह बन रहा है, जो इस घटना की सबसे अच्छी व्याख्या करता है। उन्हें नहीं पता था कि ऐसा युवा ग्रह वास्तव में में जीडब्ल्यू ओरियनिस में उभर रहा था, हालांकि उनका मानना था कि अगर उनका पूर्वानुमान सच होता है तो यह ब्रह्मांड का पहला तीन तारा प्रणालियों वाला ग्रह बन जाएगा। 2021 में मंथली नोटिसेज ऑफ द रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी की पत्रिका में प्रकाशित एक शोध पत्र इस बात के स्पष्ट साक्ष्य प्रस्तुत करता है कि ऐसा युवा ग्रह वास्तव में जीडब्ल्यू ओरियनिस में मौजूद है।

वैज्ञानिकों ने लैब में विकसित कीं कृत्रिम कोशिकाएं

वैज्ञानिकों ने पहली बार ऐसी कृत्रिम कोशिकाओं को अपनी प्रयोगशाला में विकसित किया जो जीवित कोशिकाओं के सभी मूलभूत कार्यों को करने में सक्षम हैं। वैज्ञानिकों ने अकार्बनिक पदार्थों का इस्तेमाल कर ऐसी कृत्रिम कोशिकाएं तैयार कीं, जो जीवित कोशिकाओं की भांति बाहरी चीजों को अवशोषित करने, उन्हे प्रोसैस करने और व्यर्थ पदार्थों को बाहर निकालने में पूर्णतया समर्थ हैं। शोध के विवरण जर्नल ‘नेचर’ में प्रकाशित किए गए थे।

नेचर में प्रकाशित शोध पत्र के मुताबिक न्यूयार्क यूनिवर्सिटी और शिकागो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक नए और पूरी तरह से सिंथेटिक सेल मिमिक (कृत्रिम कोशिका) को तैयार किया, जो जीवित कोशिकाओं के कई कार्यों को दोहराने में सक्षम है। शोध के दौरान जब विभिन्न कणों के मिश्रण को इन कोशिकाओं में डाला गया तो यह सामने आया कि ये स्वयं उन कणों को अवशोषित करने, भंडारण करने और उनका वितरण करने में सक्षम हैं। इन कृत्रिम कोशिकाओं के निर्माण में न्यूनतम पदार्थों का इस्तेमाल किया गया और इसे विकसित करने में किसी भी जीवित सामग्री का प्रयोग नहीं किया गया था। दशकों से वैज्ञानिक कृत्रिम कोशिकाओं को तैयार करने में लगे हुए हैं। अब तक इस दिशा में जो भी काम किए गए उनमें सक्रिय परिवहन जैसे जटिल कोशिकीय प्रक्रियाओ को करने की क्षमता का अभाव रहा। 2021 में ही पहली बार वैज्ञानिक ऐसी कृत्रिम कोशिकाएं विकसित करने में कामयाब हुए हैं, जो इन कार्यों को भी करने में सक्षम हैं।

पार्कर प्रोब ने किया सूरज के बाहरी सतह को स्पर्श

नासा के वैज्ञानिकों ने 14 दिसंबर 2021 को यह जानकारी दी थी कि सूर्य के रहस्यों को सुलझाने के इरादे से 2018 में जिस पार्कर सोलर प्रोब को लॉन्च किया गया था, उसने एक तरह से सूरज को छू लिया है। दरअसल पार्कर सूरज की सतह से महज 79 लाख किलोमीटर दूर था। इंसानी हाथों से बनी कोई भी मशीन सूरज के इतने करीब नहीं पहुंच सकी है। नासा के साइंस मिशन बोर्ड के एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर थॉमस जुर्बुशेन ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि ‘तथ्य यह है कि पार्कर ने सूर्य को स्पर्श किया है, यह सोलर साइंस के लिए एक महत्वपूर्ण पल है और एक अविस्मरणीय उपलब्धि है।’ पार्कर का मकसद सूर्य और पृथ्वी के संबंधों को समझना है। यह खासतौर से सूर्य के उन पहलुओं पर अध्ययन कर रहा है, जो किसी न किसी रूप में हम धरतीवासियों के जीवन पर असर डालते हैं।

दुनिया को महाविनाश से बचाने का नासा का ‘मास्टर प्लान’

24 नवंबर को नासा ने कैलिफोर्निया वेंडेबर्ग स्पेसफोर्स बेस से एक रॉकेट के जरिए ‘डार्ट’ यानी डबल एस्टेरॉयड रिडाइरैक्शन टेस्ट मिशन लॉन्च किया। इसके जरिए क्षुद्रग्रहों से पृथ्वी को बचाने की तकनीक का परीक्षण किया जाएगा। योजना के मुताबिक, 24 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से एक अंतरिक्ष यान 2 अक्टूबर 2022 को डाइमॉरफस नामक क्षुद्रग्रह से टकराएगा और उसके रास्ते को बदलने की कोशिश करेगा। नासा ने इसे ‘प्लैनेट्री डिफेंस’ नाम दिया है। यह प्रयोग काइनेटिक इम्पैक्टर टेक्नोलॉजी पर आधारित है। इसका मकसद यह पता लगाना है कि अगर भविष्य में कोई क्षुद्रग्रह या धूमकेतु पृथ्वी की ओर आता हुआ दिखाई दे तो उसे उसके यात्रा पथ से हटाने में यह तकनीक मददगार होगी या नहीं। पृथ्वी की रक्षा के लिए इस तरह की तकनीक का यह पहला प्रदर्शन होगा।

अंतरिक्ष में सैर-सपाटे का सपना हुआ साकार

ब्रिटिश अरबपति रिचर्ड ब्रैनसन ने 71 साल की उम्र में अंतरिक्ष यात्रा का लुत्फ उठाया। ब्रैनसन की तरह अमेज़ॉन के संस्थापक जेफ़ बेजोस ने अपनी पहली अंतरिक्ष यात्रा भाई मार्क बेज़ोस, 82 साल की वैली फ़ंक और 18 साल के ओलिवर डायमेन के साथ पूरी की। दुनिया के सबसे अमीर शख्स एलन मस्क भी कहाँ पीछे रहने वाले थे, उनकी कंपनी स्पेसएक्स ने भी चार स्पेस टूरिस्टों को अंतरिक्ष की सैर कराई। बहरहाल, 2021 में अंतरिक्ष की सैर करने-कराने के लिए दिग्गज अरबपतियों के बीच इस कदर होड़ लगी रही मानो उनके लिए पृथ्वी पर जमीन कम पड़ गई हो!

Editor, the Credible Science Pradeep's name is definitely included in the science communicators who have made their mark rapidly in the last 8-9 years. Pradeep is writing regularly in the country's leading newspapers and magazines on various subjects of science.

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