
क्या उपवास स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है?
– डॉ. सुभाष चंद्र लखेड़ा
उपवास पर कोई सार्थक चर्चा करने से पहले यह बताना जरूरी है कि हम जो आहार ग्रहण करते हैं, वह हमारे लिए क्यों और कितना जरूरी है? दरअसल, हमें सिर्फ कार्य करने के लिए नहीं, मात्र जीवित रहने के लिए भी ऊर्जा चाहिए। हमारे शरीर को यह ऊर्जा मुख्यतः कार्बोहाइड्रेट, और वसा के चयापचय यानी मेटाबॉलिज़्म से प्राप्त होती है। जरूरत पड़ने पर हमारा शरीर प्रोटीनों से भी ऊर्जा प्राप्त कर सकता हूँ। शरीर को ये सभी पोषाहार हमारे द्वारा प्रतिदिन खाए और पचाए हुए आहार से प्राप्त होते हैं।
सामान्यअवस्था में हमारे शरीर में उतनी ही ऊर्जा बनती है जिसकी हमारी शरीर को आवश्यकता होती है। फलस्वरूप, हम आहार के माध्यम से यदि आवश्यकता से अधिक कार्बोहाइड्रेट, और वसा प्राप्त करते हैं तो उसका कुछ भाग हमारे शरीर में आरक्षित रहता है। सत्तर किलोग्राम भार वाले एक स्वस्थ व्यक्ति के यकृत में लगभग 100 ग्राम ग्लाइकोजन, पेशियों में 400 ग्राम ग्लाइकोजन और वसीय ऊतकों में लगभग 12 किलोग्राम वसा आरक्षित रहती है। जब खून में ग्लूकोज का स्तर कम होने लगता है तो सर्वप्रथम यकृत में आरक्षित ग्लाइकोजन ही अपघटित ग्लूकोज में तब्दील होता है और खून में ग्लूकोज के स्तर को बनाए रखता है।
बहरहाल, यदि कोई व्यक्ति किसी निश्चित समयावधि के दौरान भूख महसूस करने के बावजूद जल के अतिरिक्त किसी भी प्रकार की खाद्य वस्तु स्वेच्छा से ग्रहण नहीं करता है तो उसके इस कार्य को उपवास कहा जाता है। यह तथ्य उल्लेखनीय है कि उपवास रखना तथा आहार उपलब्ध न होने पर भूखा रहना, इन दोनों स्थितियों में मनोवैज्ञानिक दृष्टि से बहुत अधिक भिन्नता है। उपवास रखने वाला व्यक्ति आहार ग्रहण न करने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहता है जबकि आहार न मिलने के कारण भूखा रहने वाला व्यक्ति मानसिक दृष्टि से खिन्न और चिंतित रहता है और आहार उपलब्ध होते ही उसे तत्काल ग्रहण करने का प्रयास करता है।

स्वेच्छा से कुछ समयावधि के लिए आहार ग्रहण न करना यानी उपवास रखने का प्रचलन हमारे देश में हजारों वर्षों से है। विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग उपवास को मानसिक और शारीरिक शुद्धि का अचूक उपाय मानते हैं। अधिकांश चिकित्सा पद्धतियों में कुछ रोगों के उपचार में सदियों से उपवास का उपयोग होता चला आ रहा है। प्राकृतिक चिकित्सा में विश्वास रखने वाले लोग बीमार शरीर को फिर से समस्थिति में लाने के लिए उपवास को अत्यधिक लाभदायक उपाय मानते हैं। पश्चिमी देशों में आज से कई दशक पूर्व मोटापे के उपचार के लिए उपवास का उपयोग बहुत जोरशोर से किया जाने लगा था।
सामान्यतया लोग एक दिन से लेकर सात दिन तक का उपवास रखते हैं। कुछ व्यक्ति धार्मिक वजहों से 28 दिन तक उपवास रखते हैं। दीर्घ उपवास रखने वाले कुछ लोग सात दिनों का उपवास रखते हैं। वे इस अवधि के दौरान शुद्ध जल के अलावा कोई भी खाद्य पदार्थ ग्रहण नहीं करते हैं। वास्तव में जैविक दृष्टि से मानव शरीर अपने भीतर आरक्षित ऊर्जा स्रोतों की वजह से लंबी समयावधि के आंशिक अथवा पूर्ण उपवास को बर्दाश्त करने की क्षमता रखता है। यही कारण है कि प्राचीन काल में एक या दो महीने का उपवास रखना कोई दुष्कर कार्य नहीं समझा जाता था।
प्रचलित धारणाओं और विश्वासों के अनुसार हम उपवास के माध्यम से अपने शरीर में जमा हुए हानिकारक पदार्थों से मुक्ति पा सकते हैं। उपवास के दौरान पाचन संबंधी अंगों को आराम मिलता है जबकि शरीर को त्याज्य पदार्थों से मुक्त करने वाले अंग यकृत, गुर्दे, फेफड़े और त्वचा आदि शरीर के आतंरिक वातावरण को फिर से समस्थिति में लाने के लिए सक्रिय बने रहते हैं। एक प्रसिद्ध विचारक के अनुसार उपवास द्वारा अवचेतन मन को बुरे विचारों से मुक्त करके अच्छे विचारों से भरा जा सकता है। फलस्वरूप, नियम पूर्वक उपवास करने वाले व्यक्ति मानसिक रूप से सदैव निरोग बने रहते हैं। कई धर्मों में उपवास को ईश्वर को प्रसन्न करने और उस तक पहुंचने का उपाय भी माना गया है।
बहरहाल, जहां तक उपवास को विज्ञान की कसौटी पर परखने का सवाल है, इस संबंध में सीमित वैज्ञानिक अध्ययन हुए हैं। हाँ, भूखे व्यक्तियों पर बहुत से वैज्ञानिक अध्ययन किए गए हैं। ऐसे सभी अध्ययनों से पता चलता है कि रात्रि में सोने के बाद यदि प्रातः काल से उपवास किया जाए तो धीरे – धीरे आंत में आहार से प्राप्त कोई भी सामग्री अवशोषण हेतु शेष नहीं रहती है। ऐसा होने के बावजूद भी यदि आहार ग्रहण न किया जाए तो शारीरिक रक्त में ग्लूकोज का स्तर गिरने लगता है और संबंधित व्यक्ति को भूख महसूस होने लगती है। आराम के दौरान इस अवस्था में पहुंचने पर ग्लूकोज का उपयोग मुख्य रूप से मस्तिष्क के द्वारा किया जाता है। उपवास की समयावधि बढ़ने के दौरान कंकाल पेशियां ग्लूकोज के बजाए वसा ऊतकों से प्राप्त वसीय अम्लों का उपयोग करने लगती हैं। इस अवस्था में धीरे – धीरे खून में इंसुलिन नामक हॉर्मोन का स्तर कम होने लगता है। प्रारंभ में यकृत अपने ग्लाइकोजन भंडार से ग्लूकोज की पूर्ति करता है। इस भंडार के चुकने से पहले ही यकृत वसा और अमीनो अम्लों से ग्लूकोज बनाना शुरू कर देता है। इस क्रिया को ‘ ग्लूकोनियोजेनिसिस ‘ कहते हैं। चौबीस घंटे के उपवास के पश्चात यकृत मुख्य रूप से इस क्रिया के द्वारा ही ग्लूकोज का निर्माण करता है। जब तक शरीर में वसा शेष रहती है, ऊर्जा स्रोत के रूप में शारीरिक प्रोटीनों का उपयोग अपेक्षाकृत धीमी गति से होता है। जब उपवास करने वाले व्यक्ति के शरीर में आरक्षित वसा लगभग समाप्त होने लगती है तो उसके शारीरिक अंगों की प्रोटीन तेजी से अपघटित होने लगती है और वह धीरे – धीरे मौत की तरफ बढ़ने लगता है।
जहां तक उपवास के कारण शारीरिक भार में आने वाली कमी का सवाल है, वैज्ञानिक अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ है कि उपवास के प्रथम दस दिनों में शारीरिक भार में औसतन आठ सौ ग्राम से लेकर एक किलोग्राम प्रतिदिन की दर से भार हानि होती है। इसके बाद यह दो – तीन सौ ग्राम प्रतिदिन की दर से कम होता है। वैसे भार हानि की दर इस तथ्य पर निर्भर करती है कि व्यक्ति का प्रारंभिक भार और स्वास्थ्य कैसा था।
उपवास के दौरान संबंधित व्यक्ति की ऊर्जा आवश्यकताओं से भी गिरावट आती है। उसके खून में ऐसे हॉर्मोनों का स्तर गिर जाता है जो चयापचय ( मेटाबॉलिज्म )की दर को बढ़ाते हैं। साथ ही उसके विभिन्न अंगों की ऊर्जा आवश्यकताओं में गिरावट आ जाती है।
बीसवीं सदी के अंतिम दशक में गुजरात में एक से लेकर चार सप्ताह तक का उपवास करने वाले जैन समुदाय के लोगों का अध्ययन करने पर ज्ञात हुआ कि उपवास के दौरान सांस लेने – छोड़ने की रफ्तार बढ़ जाती है जबकि रक्तदाब और हृदय गति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता। जिन व्यक्तियों पर यह अध्ययन किया गया था, वे सभी उपवास के दौरान सिर्फ ठंडा किया हुआ उबला पानी पीते रहे।
अब तक किए गए शोधकार्यों से यह भी ज्ञात हुआ है कि अल्पकालिक उपवास रुधिर वाहिकाओं में वसा के जमाव को रोकता है और दिल की बीमारियों से बचाने में सहायक हो सकता है। चार दिनों तक स्वेच्छा से किए उपवास के शारीरिक और मानसिक प्रभावों की सर्वाधिक प्रमाणिक जानकारी स्वीडिश अमेरिकन शरीरक्रिया विज्ञानी आंतोन जुलियस कार्लसन की पुस्तक ‘ द कंट्रोल ऑफ हंगर इन हैल्थ एंड डिसीज ‘ में दी गई है। इस जानकारी के अनुसार उपवास के प्रथम तीन दिनों तक भूख की अनुभूति बनी रहती है। तत्पश्चात यह क्षीण होने लगती है और उपवास करने वाले व्यक्ति में आहार के प्रति अरुचि पैदा होने लगती है। उपवास के चौथे दिन व्यक्ति को मानसिक तनाव और शारीरिक कमजोरी महसूस होने लगती है। ऐसी स्थिति में यदि उपवास करने वाला व्यक्ति भोजन ग्रहण करना शुरू कर देता है तो यह कमजोरी दो – तीन दिन में दूर हो जाती है और व्यक्ति विशेष अपने को पहले से कहीं अधिक स्फूर्त और ऊर्जावान महसूस करता है। जिन वैज्ञानिकों ने स्वेच्छा से चार दिन तक उपवास किया था, उनके अनुसार उन्हें बाद में ऐसा महसूस हुआ जैसे वे किसी पर्वतीय स्थान पर एक माह तक विश्राम और मनोरंजन करके लौटे हों। अब तक उपलब्ध जानकारी के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अल्पकालिक उपवास मानसिक और शारीरिक दृष्टि से लाभकारी है।

बहरहाल, उपवास के संबंध में यह वैज्ञानिकों की एकमत राय है कि लंबे समय के उपवास चिकित्सकों की देखरेख में किए जाने चाहिएं। उपवास के दौरान शारीरिक परिश्रम से बचना चाहिए और जब उपवास तोड़ा जाए तो प्रारंभ में ऐसी सभी आहार सामग्रियों से बचना चाहिए जो पाचन तंत्र पर अधिक बोझ डालती हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों में उपवास से होने वाले लाभ संक्षेप में इस प्रकार से हैं :
- उपवास टाइप 2 मधुमेह में लाभदायक पाया गया है। यह ऐसे रोगियों में इन्सुलिन प्रतिरोध को क्षीण करता है। फलस्वरूप, ऐसे रोगियों की इन्सुलिन संवेदनशीलता में वृद्धि होने लगती है और उनका शरीर खून में मौजूद ग्लूकोज का उपयोग बेहतर तरीके से करने लगता है। बहरहाल, टाइप 2 मधुमेह के रोगियों को केवल अल्पावधि के लिए उपवास करना चाहिए। साथ ही उन्हें इस संबंध में अपने चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।
- उपवास सूजन से जुड़े रोगों से बचाव करने में मददगार है। मल्टीप्ल स्क्लेरोसिस में भी इससे लाभ हो सकता है।
- उपवास उच्च रक्तदाब, कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स के स्तर को कम करता है। फलस्वरूप, वैज्ञानिक तरीके से उपवास करने से कोरोनरी हार्ट डिजीज होने के खतरे में कमी आती है।
- जानवरों पर किए अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि बारह घंटे से लेकर चौबीस घंटे तक का उपवास तंत्रिका संबंधी विकारों से बचाव करता है। यह पार्किंसन और अल्ज़ाइमर रोग होने की संभावना को कम करता है।
- यह चयापचय में वृद्धि करता है और शरीर में वसा की मात्रा को कम करके शारीरिक भार को कम करने में मदद करता है।
- सप्ताह में एक बार अथवा तीन दिन की अंतराल पर दो बार उपवास करने से संबंधित व्यक्ति के शरीर में ग्रोथ हार्मोन के स्राव में वृद्धि होती है। यह हार्मोन शारीरिक वृद्धि, चयापचय, मोटापा रोकने और पेशी शक्ति में वृद्धि में मदद करता है।
- चूहों, खरगोशों और अन्य दूसरे प्रायोगिक प्राणियों पर किए अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि उपवास शरीर को स्फूर्त बनाए रखता है और जीवन की अवधि को बढ़ाता है।
- प्रायोगिक प्राणियों पर किए अध्ययनों से ऐसे संकेत भी मिले हैं कि उपवास कैंसर के फैलाव को रोकता है और कीमोथेरपी के प्रभाव में वृद्धि करता है।
बहरहाल, उपवास के अनेकानेक वर्णित संभावित लाभों के बावजूद यह सभी के लिए सही हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता है। मधुमेह के रोगियों के लिए यह खतरनाक भी हो सकता है। यदि आप दीर्घकालिक यानी 24 घंटे या इससे अधिक समय तक का उपवास करना चाहते हैं तो चिकित्सक से परामर्श करना बेहद जरूरी है। बुजुर्गों, किशोरों और सामान्य से कम शारीरिक वजन वाले लोगों को भी अपने डॉक्टर की देखरेख में उपवास करना चाहिए। यदि आप पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं तो उपवास के दौरान अपने शरीर में जल की कमी न होने दें। सामान्य उपवास के बाद उच्च ऊर्जाधारी खाद्य सामग्री ग्रहण करें। उपवास के दौरान शारीरिक व्यायाम और दूसरे कठिन शारीरिक कार्यों से दूर रहें। दीर्घकालिक उपवास के दौरान तो चिकित्सा पर्यवेक्षण बेहद जरूरी है अन्यथा यह व्यक्ति विशेष के लिए नुकसानदेह और जानलेवा साबित हो सकता है।