
‘कृत्रिम सूर्य परियोजना’ के तहत हाल ही में चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ प्लाज़्मा फिज़िक्स के न्यूक्लियर फ्यूज़न रिएक्टर ‘ईस्ट’ में विज्ञानियों ने कुछ नए प्रयोगों को अंजाम देने की शुरुआत की है। वर्तमान में रिएक्टर ईस्ट में सूर्य की सतह के तापमान से 7 गुना ज़्यादा तापमान उत्पन्न किया जा सकता है और इसको लगभग 100 सेकंड तक स्थिर भी रखा जा सकता है। ग्लोबल टाइम्स की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक रिएक्टर के तापमान और समय सीमा को बढ़ाने के उद्देश्य से इन प्रयोगों को शुरू किया गया है। अगर विज्ञानियों को इसमें कामयाबी मिल जाती है तो पृथ्वी को नुकसान पहुंचाए बिना बड़े पैमाने पर ऊर्जा उत्पन्न करने का तरीका मिल जाएगा।
दरअसल, वैज्ञानिक लंबे अर्से से ऐसे ईंधनों की तलाश में हैं, जो पर्यावरण और मानव शरीर को नुकसान पहुंचाए बगैर हमारी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम हों। विज्ञानियों की यह तलाश नाभिकीय संलयन (न्यूक्लियर फ्यूजन) पर खत्म होती दिखाई दे रही है। नाभिकीय संलयन प्रक्रिया ही हमारे सूर्य तथा अन्य तारों की ऊर्जा का स्रोत है। वैज्ञानिक कई वर्षों से सूर्य में होने वाली संलयन अभिक्रिया को पृथ्वी पर कराने के लिए प्रयासरत हैं, जिससे ऊर्जा पैदा की जा सके। तकनीकी रूप से यह धरती पर एक कृत्रिम सूर्य को बनाने जैसा है।
नाभिकीय विखंडन पर आधारित वर्तमान रिएक्टरों की आलोचना का सबसे बड़ा कारण है इनसे ऊर्जा के साथ रेडियोएक्टिव अपशिष्ट पदार्थों का भी उत्पन्न होना। विखंडन रिएक्टर इंसान और पर्यावरण के लिए घातक हैं। इनसे डीएनए में उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) तक हो सकते हैं। इससे पीढ़ी-दर-पीढ़ी आनुवंशिक (जेनेटिक) दोषयुक्त संतानें पैदा हो सकती हैं। वहीं संलयन रिएक्टर से उत्पन्न होने वाले रेडियोएक्टिव कचरे बहुत कम होते हैं और इनसे पर्यावरण को कोई भी नुकसान नहीं होता।
कृत्रिम संलयन को लेकर आईटीईआर (इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर) भारत सहित पूरी दुनिया का एक साझा सपना है। इस परियोजना के तहत एक नाभिकीय रिएक्टर का निर्माण किया जा रहा है जिसमें नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया के आधार पर ऊर्जा से जुड़े अनुसंधान संपन्न होने हैं। आईटीईआर परियोजना से जुड़े विज्ञानियों के मुताबिक, ये मानव इतिहास का सबसे जटिल साइंस प्रोजेक्ट है। दरअसल, आईटीईआर में टोकामक प्रणाली का उपयोग होने वाला है, जिसमें हाइड्रोजन के भारी समस्थानिकों की पतली धार को शक्तिशाली चुंबकों से साधकर लेजर के जरिए 10 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाएगा। तकनीकी दृष्टि से यह एक बेहद चुनौतीपूर्ण काम है।

चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ प्लाज़्मा फिज़िक्स के रिएक्टर ईस्ट में कृत्रिम संलयन करवाने लिए हाइड्रोजन के दो भारी समस्थानिकों ड्यूटेरियम और ट्रिटियम को ईधन के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। पृथ्वी के समुद्रों में ड्यूटेरियम काफी मात्रा में मौजूद है। जबकि ट्रिटियम को लीथियम से प्राप्त किया जा सकता है जो धरती पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। इसलिए नाभिकीय संलयन के लिए ईधन की कभी कमी नहीं होगी। ड्यूटेरियम में एक न्यूट्रॉन होता है और ट्रिटियम में दो। अगर इन दोनों में टकराव हो तो उससे हीलियम का एक नाभिक बनता है। इस प्रक्रिया में ऊर्जा उत्पन्न होती है। भविष्य में इसी ऊर्जा का इस्तेमाल टर्बाइन को चलाने में किया जाएगा, जिसके फलस्वरूप ऊर्जा या बिजली उत्पादन शुरू की जा सकेगी। आईटीईआर का लक्ष्य 2035 तक 1000 सेकंड (लगभग 17 मिनट) तक लगातार न सिर्फ ड्यूटेरियम और ट्रिटियम के प्लाज्मा को नियंत्रित करने का, बल्कि उनका संलयन कराकर बाहर से ली गई कुल ऊर्जा का दस गुना ज्यादा उत्पन्न करने का है।