
13 अप्रैल 1888 की घटना है। डायनामाइट के आविष्कारक के बड़े भाई लुडविग नोबेल के देहांत पर एक फ्रांसीसी अखबार ने गलती से यह छाप दिया कि मौत के सौदागर, डायनामाइट के आविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल का निधन हो गया है। देहांत की सूचना देते हुए उस अखबार ने लिखा कि लोगों की हत्या करने और चिथड़े-चिथड़े उड़ानेवाली विस्फोटक सामाग्री का आविष्कार करके बेशुमार दौलत कमाने वाले अल्फ्रेड नोबेल की मृत्यु हो गई। अखबार में इस शोक संदेश को पढ़कर अल्फ्रेड नोबेल सिर पकड़कर बैठ गए। उनके सामने वह परिदृश्य आ गया, जो कि उनकी वास्तविक मृत्यु होने पर आने वाला था। इस घटना ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। वे सोचने लगे कि क्या दुनिया उनके बारे में इतना खराब सोचती है? इस घटना ने उनका जीवन बदलकर रख दिया और उन्होंने फैसला किया कि वह बिलकुल इस तरह याद नहीं किया जाना चाहेंगे। अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने वसीयत लिखी और अपनी सारी संपत्ति विश्व शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अग्रणी कार्य करने वालों को पुरस्कार प्रदान करने के लिए दान कर दी। कई इतिहासकारों का मानना है कि अगर जीते जी अल्फ्रेड नोबेल के मौत की खबर नहीं छपती तो शायद आज नोबेल पुरस्कार का अस्तित्व ही नहीं होता!
अल्फ्रेड बर्नहार्ड नोबेल का जन्म 21 अक्टूबर, 1833 को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुआ था। उनके पिता इमानुएल नोबेल एक व्यापारी और विस्फोटकों के विशेषज्ञ थे। अल्फ्रेड जब नौ साल के थे तब उनके पिता को व्यापार में इतना घाटा हुआ कि वे स्वीडन छोड़कर रूस चले गए। अल्फ्रेड को रसायन विज्ञान में बचपन से से ही दिलचस्पी थी। 1850 में अल्फ्रेड ने पेरिस में एक साल तक रसायन विज्ञान का अध्ययन किया और फिर संयुक्त राज्य अमेरिका में चार साल उच्च अध्ययन। वहाँ से वे फिर पिटसबर्ग गए, मगर 1859 में पिता की फैक्ट्री का दिवाला निकलने के बाद पिता-पुत्र स्वीडन वापस लौट आए।
1853 से 1856 के बीच क्रीमिया युद्ध के दौरान अल्फ्रेड ने रूस के सम्राट जार और जनरल ओं को विश्वास दिलाया कि समुद्री खदानों के इस्तेमाल से दुश्मनों को सीमा में घुसने से रोका जा सकता है। उनकी मदद से ब्रिटिश रॉयल नेवी को सेंड पीटरसन की सीमा पर ही रोक दिया गया थे। अल्फ्रेड ने पेरिस की एक निजी शोध कंपनी में काम किया जहां उनकी मुलाकात इटली के रसायनज्ञ अस्कानियो सोब्रेरो से हुई। सोब्रेरो ने अति विस्फोटक द्रव ‘नाइट्रोग्लिसरीन’ का आविष्कार किया था। यह व्यावहारिक इस्तेमाल की लिए बेहद खतरनाक पदार्थ था। यहीं से अल्फ्रेड की रूचि ‘नाइट्रोग्लिसरीन’ में पैदा हुई, जहां उन्होंने निर्माण कार्यों में इसके इस्तेमाल करने के विषय में सोचा।
अल्फ्रेड ने अपना पूरा ध्यान ‘नाइट्रोग्लिसरीन’ को एक विस्फोटक के रूप में विकसित करने में लगा दिया। दुर्भाग्य से, उनका यह परीक्षण असफल हो गया, जिसमें कई लोगों की मौत भी हो गई। मरने वालों में अल्फ्रेड का छोटा भाई एमिल नोबेल भी शामिल था। इस घटना के बाद स्वीडिश सरकार ने नाइट्रोग्लिसरीन के स्टॉकहोम की सीमा के भीतर किसी भी प्रकार के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि अल्फ्रेड नहीं रुके, उन्होंने अपना प्रयोग जारी रखा। 1866 में 33 वर्ष की अवस्था में अल्फ्रेड नाइट्रोग्लिसरीन से भरी हुई परखनली को उलट रहे थे कि परखनली अचानक नीचे जा गिरी। संयोगवश यह परखनली लकड़ी के बुरादे से भरे हुए एक डिब्बे में गिरी थी, जिसे लकड़ी के बुरादे ने सोख लिया था। अगर यह नीचे गिरा होता, तो अल्फ्रेड समेत प्रयोगशाला कार्यरत सभी लोग मर जाते। लकड़ी के बुरादे में मिली नाइट्रोग्लिसरीन की जांच करने पर उन्होने पाया कि इसमें उतना विस्फोटक नहीं है, जितना कि तरल रूप में था। अत: उन्होंने नाइट्रोग्लिसरीन को सिलिका के साथ मिलाकर ऐसा पेस्ट तैयार किया, जिसे मनचाहे आकार की छड़ों में बदला जा सके। इन छड़ों का इस्तेमाल विस्फोट करने के लिए आसान था। इस तरह अल्फ्रेड ने दयानमाइट का आविष्कार कर डाला।
डायनामाइट का प्रयोग खदानों और पत्थर तोड़ने में विस्फोटक के रूप में काम आने लगा। इसके अलावा उसका उपयोग युद्ध में भी होने लगा। उनके इस डायनामाइट ने उन्हें और अमीर बना दिया। अल्फ्रेड ने 20 देशों में उस जमाने में अपने अलग-अलग करीब 90 कारखाने स्थापित किए थे, जब यातायात, संचार सरीखी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं थी। आजीवन अविवाहित रहे अल्फ्रेड नोबेल की रसायन विज्ञान, भौतिकी शास्त्र के साथ-साथ अंग्रेजी साहित्य और कविताओं में भी गहरी रुचि थी और उन्होंने कई नाटक, कविताएं व उपन्यास भी लिखे लेकिन उनकी रचनाओं एवं कृतियों का प्रकाशन नहीं हो पाया। 10 दिसम्बर 1886 को अल्फ्रेड नोबेल पुरस्कारों के लिए 92,00,000 डॉलर की संपत्ति छोड़कर हमेशा के लिए दुनिया से विदा हो गए।